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________________ (१) जागृति करवा देते हैं। पूरे वर्ल्ड को कबूल करना पड़े, वैसा यह विज्ञान है। 'जगत् क्या है? क्या नहीं? यहाँ फल देनेवाला क्या है? और वहाँ फल देनेवाला क्या है? कितने भाग में चेतन है और कितने भाग में निश्चेतन है? जगत् कौन चलाता है?' वह सारी हमारी खोज है। १७ आग्रह मात्र भावनिद्रा ही ! जब तक मनुष्य को किसी भी प्रकार का आग्रह है, तब तक मनुष्य भावनिद्रा में ही है। आग्रह, मोक्ष में जाते हुए वह गलत चीज़ है। ऐसा जब से जाने, तब से जागृति शुरू होती है। अभी तो आग्रह ही नहीं, परन्तु मताग्रही, दुराग्रही हो गए हैं। जाति का आग्रह हो, उसे कदाग्रही कहा है। वह बहुत जोखिमवाला नहीं है। लेकिन मत का आग्रह मतलब मताग्रह, यानी कि 'मैं जैन, मैं वैष्णव, मैं स्थानकवासी, मैं देशवासी, मैं दिगंबर' वह बहुत ही जोखिमवाला है। हिताहित का विवेक, वह भी जागृति वीतरागों का मार्ग क्या कहता है कि किसीको आप 'वह गलत है' ऐसा कहोगे तो आप ही गलत हो। उसे दृष्टिफेर है, इसलिए उसे वैसा दिखता है। उसमें उसका क्या दोष? कोई अँधा दीवार से टकराए, फिर अँधे को उलाहना दिया जाता होगा कि दिखता क्यों नहीं? अरे, दिखता नहीं था इसलिए ही तो वह टकरा गया। वैसे ही यह पूरी दुनिया खुली आँखों से सो रही है। ये सभी क्रियाएँ हो रही हैं, वे सभी नींद में ही हो रही हैं। स्वप्न में यह सब हो रहा है। और मन में जाने क्या ही मान बैठा है कि हम तो कितनी सारी क्रियाएँ कर रहे हैं। पर ये स्वप्न की क्रियाएँ काम नहीं आएँगी। जागृत की क्रियाओं की ज़रूरत पड़ेगी। ये तो खुली आँखों से सो रहे हैं। जागृत तो कौन होता है? खुद के हिताहित का भान हो वह पूरा जगत् मान बैठा है कि 'हिताहित का मुझे भान है।' पर वह हिताहित का भान नहीं कहलाता। खुद ही अहित कर रहा है, जिस लक्ष्मी को इकट्ठी करने के लिए रात-दिन हिताहित ढूंढता है, वह लोकसंज्ञा है। आप्तवाणी-४ उसके कारण रात-दिन खा-पीकर पैसों के पीछे ही पड़े रहते हैं। वह देखो न, 'ऑन' का व्यापार (मूल क़ीमत से ज्यादा में बेचना) किया है! इस हिन्दुस्तान में तो भला ऑन के व्यापार होते होंगे? छुपकर जो-जो कार्य करते हैं, वह अधोगति है। हिन्दुस्तान में पैदा हुआ तो जन्म से ही सांसारिक जागृति कुछ अंशों तक लेकर आया होता है। एक तो सांसारिक जागृति और फिर कलियुग, तो सूझ नहीं पड़ती है। सत्युग हो तब तो सूझ पड़ती है। इन छोटे बच्चों को उनके खिलौनों संबंधित ही जागृति होती है, वैसे ही इन लोगों को तो 'इन्कम टैक्स' और 'सेल टैक्स' संबंधी ही, पैसे संबंधी ही जागृति पूरे दिन रहा करती है। हिन्दुस्तान के लोगों को तो ऐसा होता होगा ? हिन्दुस्तान का मनुष्य यदि पूरा जागृत हो जाए तो पूरे वर्ल्ड को उँगली पर नचाए । ये तो अणहक्क (बिना हक़ का) की लक्ष्मी और अणहक्क के विषय के पीछे ही पड़े हैं। परन्तु उसे मालूम नहीं कि जाते समय अर्थी निकालते हैं और नामवाला बैंक बेलेन्स सारा कुदरत की जब्ती में चला जाता है। कुदरत की जब्ती मतलब रिफंड भी नहीं मिलता। सरकार ने ले लिया हो तो रिफंड भी मिलता है, पर यह तो कुदरत की जब्ती ! इसलिए हमें क्या कर लेना चाहिए? आत्मा का । आत्मा के बारे में भले न समझो पर परलोक का तो करो! परलोक का नहीं बिगड़े, वैसा तो रखो ! यह लोक तो बिगड़ा हुआ ही है, उसमें कुछ बरकत है नहीं। हिताहित का भान हो कि मुझे साथ में क्या ले जाना है, इतना यदि वह सोचता हो न तो भी काफी है। १८ ज्ञानी जागृत वहाँ जगत्..... प्रश्नकर्ता : कृष्ण भगवान ने कहा है, 'जहाँ जगत् जागता है वहाँ हम सोते हैं और जहाँ जगत सोता है, वहाँ हम जागते हैं।' वह समझ में नहीं आया। वह समझाइए । दादाश्री : जगत् भौतिक में जागता है, वहाँ श्री कृष्ण सोते हैं और जगत् सोता है, वहाँ श्री कृष्ण भगवान जागते हैं। अंत में अध्यात्म की जागृति में आना पड़ेगा। संसारी जागृति वह अहंकारी जागृति है और निर्अहंकारी जागृति से मोक्ष है।
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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