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________________ (१) जागृति आप्तवाणी-४ का कुछ लेना-देना नहीं है, कुंडलिनी जागृत हुई यानी आत्मा थोड़े ही जागृत हुआ कहा जाएगा? वह मादकता है एक प्रकार की। उससे एकाग्रता रहती है और ठंडक लगती है। दरअसल ज्ञानजागृति की जरूरत पड़ेगी। प्रश्नकर्ता : ये जो 'मेडिटेशन' करते हैं, वे सभी कहते हैं न कि मेडिटेशन बहुत उपयोगी है, तो वह क्या है? दादाश्री : मेडिटेशन मात्र मादकता है, उससे ठंडक रहती है। जिसे जलन होती हो उसे मेडिटेशन करने से शांति लगती है। आपने ज्ञान लिया तब से आपको शुद्धात्मा का लक्ष्य रहता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : दादा, वह तो निरंतर रहता है। दादाश्री : वही ध्यान है। दूसरे और भला कौन-से ध्यान करने हैं? यह नाक दबाकर करते हैं, वह ध्यान नहीं कहलाता। प्रश्नकर्ता : हम घर पर आपका निदिध्यासन करते हैं, वह प्रत्यक्ष है या परोक्ष? इसलिए एकाग्रता वगैरह करो तो अहंकार बढ़ जाता है और ऐसे नुकसान उठाता है! सिर्फ एक यथार्थ ज्ञान का रास्ता ही सेफसाइडवाला है कि जिससे दूसरा कुछ खड़ा नहीं होता। इस मेडिटेशन से खुद को क्या फायदा हुआ, वह हमें सोचना चाहिए। अपना क्लेश कम हुआ? यदि अपना क्लेश कम हुआ हो तो 'रिलेटिव' धर्म प्राप्त हुआ कहलाएगा और क्लेश का नाश हुआ तो 'रियल' धर्म प्राप्त हुआ कहलाएगा। क्लेश करवानेवाला कौन है? अज्ञान। जितने 'रिलेटिव' धर्म हैं, वे अज्ञान में रखनेवाले हैं। दो प्रकार के ध्यान अपने आप ही होते हैं, आर्तध्यान और रौद्रध्यान। जब कि धर्मध्यान और शुक्लध्यान, उन्हें पुरुषार्थ कहा जाता है। आत्मध्यान का मतलब ही शुक्लध्यान। मैं शुद्धात्मा हूँ' वैसा ध्यान रहा, वही शुक्लध्यान। जागृति, जागृत की आराधना से ही प्रश्नकर्ता : आप बलवाते हैं वे मंत्र, आरती वे सब क्या है? उन सबकी क्या ज़रूरत है? दादाश्री : ऐसा है, कि यह जो बुलवाता हूँ न, वह पूर्ण जागृत लोगों के नाम लेकर बुलवाता हूँ। जो जागृत हैं, उनकी भजना सिखाते हैं। जो जागृत हैं उन्हें याद करो तो आपकी जागृति बढ़ती है। उनमें जितने जागृत हो चुके हैं और जितने जागृत हैं, अभी उन्हें नमस्कार बुलवाया है और उनमें भी अभी जो जागृत हैं, उनकी बात अधिक है और जो हो चुके हैं उनकी साधारण बात है। ये नमस्कार तो सभी जागृतों को प्रसन्न करते हैं. विनय करते हैं, प्रेमभाव करते हैं। यह तो साइन्टिफिक है। वह जैसा यहाँ सब करते हैं, वैसा हम भी करें तो हम पर 'ज्ञानी पुरुष' प्रसन्न होते हैं। खुद की जरूरत से ज्यादा अक्कल डालें कि फिर बिगड़ा। हम लोगों की दुनिया तो एक है, पर वैसी दूसरी दुनिया के साथ 'ज्ञानी पुरुष' के तार जोइन्ट हैं। अभी जो संपूर्ण जागृत हैं, उनके साथ हम तार जोड़ देते हैं, जिनमें हमसे थोड़े ही अंश विशेष जागृति है, उनके साथ आपका तार जोड़ देते हैं। वह तार जोड़ने से उनके साथ पहचान हो जाती है। दादाश्री : वह प्रत्यक्ष है। जब तक हम हाज़िर हैं तब तक यह हमारा फोटो भी प्रत्यक्ष है। 'मैं शुद्धात्मा हँ' का ध्यान शायद किसीको नहीं रहता हो, पर 'दादा' ही ध्यान में रहते हों तो वे दोनों एक ही है। क्योंकि 'ज्ञानी पुरुष', वे ही आपका आत्मा है। प्रश्नकर्ता : मेडिटेशन शून्यता में ले जाता है? दादाश्री : नहीं। वह स्पंदन बढ़ाता है। इगोइज़म बढ़ाता है। प्रश्नकर्ता : ये जो चक्र हैं, उन चक्रों जैसा कुछ नहीं है? दादाश्री : है। वे सारे चक्र इलेक्ट्रिकल इन्स्टॉलेशन हैं। और वहाँ पर चक्र पर ध्यान करने से एकाग्रता होती है, मन अच्छा होता है, स्थिरता आती है, पर अहंकार बढ़ जाता है। सिर्फ सच्चा ज्ञान ही ऐसा है कि जो काउन्टर वेट नहीं माँगता है। बाक़ी ये दूसरे सभी काउन्टर वेट माँगें वैसी वस्तुएँ हैं। जो वस्तु लो उसके सामने बदले में दूसरी वस्तु देनी पड़ती है।
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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