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________________ १८२ [१३] व्यवहारधर्म : स्वाभाविकधर्म सुख प्राप्त करने के लिए धर्म अंतरसुख - बाह्यसुख कौन-सा? १०८ अहंकार विलय होने से सनातन सर्व समाधान से, सुख ही १०८ सुख ११३ भगवत् उपाय ही, सुख का मिथ्या दर्शन से ही दुःख कारण १०९ दु:ख उपकारी बनते हैं । ११४ काल का तो क्या दोष? १११ पुद्गल सुख : उधार का व्यवहार११४ [१४] सच्ची समझ, धर्म की धर्म का स्थान ११६ सच्चे धर्म की समझ १२१ धर्म : त्याग में या भोग में ११६ मोक्ष का मार्ग तो... १२२ ...तब धर्म ने रक्षण किया? ११७ स्वभावभाव, वह स्वधर्म १२४ जन्म से पहले और मरने के बाद...१२० [१५] आचरण में धर्म धर्म और आचरण १२५ ज्ञान के अनुसार प्रवर्तन १२७ मनुष्यत्व की सार्थकता १२५ सीधे के लिए शक्ति माँगनी क्लेश, वहाँ धर्म नहीं १२५ पड़ती हैं १२९ अक्रम विज्ञान : नया ही अभिगम१२६ प्रार्थना से शक्तियाँ प्राप्त १२९ आज्ञा ही धर्म १२७ प्रार्थना : सत्य का आग्रह १३० [१६]'रिलेटिव' धर्म : विज्ञान 'रिलेटिव' धर्म, डेवलप होने धर्माधर्म आत्मा के लिए १३२ ज्ञानधन आत्मा १३६ वीतराग धर्म ही मोक्षार्थ १३३ विज्ञानघन आत्मा १३७ 'रिलेटिव' धर्म की मर्यादा १३३ गच्छ-मत, वहाँ 'रिलेटिव' धर्म १३७ पारिणामिक धर्म का थर्मामीटर १३४ धर्मसार अर्थात्..... मुख्य भावना, मोक्षमार्ग में १३५ धर्म क्या? विज्ञान क्या? १३९ [१७] भगवान का स्वरूप, ज्ञान दृष्टि से ईश्वर का अंश या सर्वांश? १४० संकल्पी चेतन भगवान की सर्वव्यापकता १४१ [१८] ज्ञातापद की पहचान आप आत्मा? पहचाने बिना? १४३ अंत में तो अहंकार विलय करना है १४५ आत्मा की भूल? १४३ 'ज्ञाता' को ही 'ज्ञेय' बनाया! १४५ स्वाध्याय या पराध्याय? १४४ अज्ञान निवृत्ति विज्ञान से । [१९] यथार्थ भक्तिमार्ग श्रद्धा ही फल देती है १४८ भक्ति : स्थूल से सूक्ष्मतम १५२ भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति १४९ मोक्ष : ज्ञान से या भक्ति से? १५३ भक्ति : परोक्ष और प्रत्यक्ष १५० पराभक्ति : अपराभक्ति ५१ [२०] गुरु और ज्ञानी यथार्थ गुरु १५५ ही देता १५८ लौकिक गुरु १५६ 'ज्ञानी पुरुष' का सिद्धांत कैसा! १६१ 'रिलेटिव' धर्म, तो सफर के धर्म का मर्म १६२ साथी जैसे १५७ ....वैसा भान, वह भी बड़ी जागृति१६२ व्यापार, धर्म में तो शोभा नहीं गुरु को पहचानना...... १६२ [२१] तपश्चर्या का हेतु तप, त्याग और उपवास १६४ उपवास में उपयोग १७० प्राप्त तप १६५ ....एक भी उपवास नहीं हुआ १७३ 'ज्ञानी' को त्यागात्याग? १६६ उणोदरी-जागृति का हेतु १७३ शुद्धात्मा का लक्ष्य १६७ 'उपवास', फिर भी कषाय १७४ 'दादाई' ग्यारस १६७ उपवास से मुक्ति? १७७ आयंबिलः एक साइन्टिफिक प्रयोग१६९ 'करो' पर फल 'श्रद्धा' से ही १७८ [२२] लौकिक धर्म मोक्ष के लिए कौन-सा धर्म? १७९ 'आत्मा' की पहचान 'ज्ञानी' ही धर्म, पक्ष में या निष्पक्षता में? १८० करवाएँ धर्म में भी व्यापारी वृत्ति... १८१ लौकिक धर्म, द्वंद्व में ही रखें १८३ ...तो रिर्टन टिकिट तिर्यंच की! १८१ तुरन्त ही फल दे वह धर्म १८४ [२३] मोक्ष प्राप्ति, ध्येय मोक्ष, वह क्या है? १८५ भूल रहित बन १९२ मोक्षप्राप्ति का मार्ग १८६ मात्र मोक्ष का ही नियाणां १९३ मोक्ष अर्थात् सनातन सुख... १८७ मोक्ष, स्थान या स्थिति? १९३ सिद्धगति, स्थिति कैसी? १८८ कठिन, मोक्षमार्ग या संसारमार्ग? १९४ मोक्ष का स्वरूप १८८ सच्चा मुमुक्षु कैसा होता है? १९४ स्वर्ग, फिर भी बंधन १८९ आत्मा अबंध, किस अपेक्षा से? १९५ विनाशी चीज़ नहीं चाहिए १९० मोक्ष किसका? जगत् की सत्ता कहाँ पर झुके? १९१ _ [२४] मोक्षमार्ग की प्रतीति मोक्षप्राप्ति-मार्गदर्शन १९६ मोक्ष - खुद अपना भान होने से १९८ [२५] I & My 'मैं' किस तरह अलग हो? २०१ 'ज्ञानी' ही मौलिक स्पष्टीकरण दें२०३ [२६] स्मृति - राग-द्वेषाधीन तीव्र स्मृति, वहाँ तीव्र राग-द्वेष २०५ प्रशस्त राग, मोक्ष का कारण २०८ स्मृति-विस्मृति, करना मुश्किल २०६ याद? कितना बड़ा परिग्रह! २०९ ज्ञानी की स्मृति २०७ १३५ १३८ १४१ १५३
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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