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________________ (४०) वाणी का स्वरूप ३११ ३१२ आप्तवाणी-४ और उस समय यदि आप विरोध करने लगे तो वह उसे याद रहेगा और कहेगा कि, 'ये तो बिना बरकत का ही है।' इस दूषमकाल में वाणी से ही बंधन है। सुषमकाल में मन से बंधन था। ये शब्द नहीं होते न तो मोक्ष तो आसान ही है। इसलिए किसीके लिए एक अक्षर भी नहीं बोल सकते। किसीको गलत कहना, वह खुद के आत्मा पर धूल डालने के समान है। ये शब्द बोलना तो जोखिमदारी है सारी। उल्टा बोले तो उसकी भी भीतर खद पर धल गिरती है, उल्टा सोचे तो उसकी भी भीतर खुद पर धूल गिरती है। इसलिए उस उल्टे का आपको प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए, तो उससे छूटा जा सकता है। जीवंत टेपरिकॉर्ड, कैसी जिम्मेदारी! ये टेपरिकॉर्ड और ट्रान्समीटर ऐसे-ऐसे तो कितने ही साधन अभी बन गए हैं। तो बड़े-बड़े लोगों को भय लगता ही रहता है कि कोई कुछ टेप कर लेगा तो? अब इनमें तो शब्द टेप होते हैं, उतना ही है। परन्तु मनुष्य का शरीर, मन सबकुछ ही टेप हो जाए, ऐसा है। उसका लोग थोड़ासा भी भय नहीं रखते। यदि सामनेवाला सो रहा हो और आप कहो कि 'यह नालायक है', तो वह उसके अंदर टेप हो गया! वह फिर उसे फल देगा। अर्थात् सोते हुए मनुष्य के बारे में भी नहीं बोलते। एक अक्षर भी नहीं बोलते। क्योंकि सबकुछ टेप हो जाए ऐसी यह मशीनरी है! बोलना हो तो अच्छा बोलना कि, 'साहब, आप बहुत अच्छे व्यक्ति हैं' अच्छा भाव रखना, तो उसके फलस्वरूप आपको सुख मिलेगा। परन्तु थोड़ा-सा भी उल्टा बोले, अंधेरे में भी बोले या अकेले में भी बोले, तो उसका फल कड़वा जहर जैसा आएगा। यह सब टेप ही हो जानेवाला है। इसलिए अब यह अच्छा टेप करवाओ। प्रश्नकर्ता : कड़वा तो चाहिए ही नहीं। दादाश्री: कड़वा तो आपको चाहिए तो बोलना, नहीं चाहिए तो मत बोलना। कोई मारे, फिर भी उसे कड़वा मत बोलना। उसे कहना कि, 'तेरा उपकार मानता हूँ। भगवान ने तो कहा है कि इस काल में कोई गालियाँ दे गया हो, तो उसे आप खुद भोजन के लिए बुलाना। इतनी अधिक वाइल्डनेस होगी कि उसे क्षमा ही देना। यदि कोई रिवेन्ज (बदला) लेने गए न, तो फिर वापिस संसार में खिंचेंगे। रिवेन्ज नहीं लेना होता है इस काल में। इस दुषमकाल में निरी वाइल्डनेस होती है। क्या विचार नहीं आएँगे, वह कहा ही नहीं जा सकता। दुनिया से बाहर के विचार भी आते हैं! इस काल के जीव तो बहुत टकराएंगे। ऐसे लोगों के साथ हम बैर बाँधे तो हमें भी टकराना पड़ेगा। इसलिए हम कहें, 'सलाम साहब।' इस काल में तुरन्त माफ़ी दे देनी चाहिए, नहीं तो आपको खिंचना पड़ेगा। और यह जगत् तो बैर से ही खड़ा रहा है। इस काल में किसीको समझाने जाया जाए, ऐसा नहीं है। यदि समझाना आए तो अच्छे शब्दों में समझाओ कि यदि वह टेप हो जाए, फिर भी जिम्मेदारी नहीं आए। इसलिए पोज़िटिव रहना। जगत् में पोज़िटिव ही सुख देगा और नेगेटिव सभी दु:ख देगा। यानी कितनी बड़ी जोखिमदारी है? न्याय-अन्याय देखनेवाला तो बहुत लोगों को गालियाँ देता है। न्यायअन्याय तो देखने जैसा ही नहीं है। न्याय-अन्याय तो एक थर्मामीटर है जगत् का, कि किसे कितना बुखार उतर गया और कितना चढा? जगत् कभी भी न्यायी बननेवाला नहीं है और अन्यायी भी होनेवाला नहीं है। ऐसे का ऐसा ही मिलाजुला चलता रहेगा। यह जगत् हमेशा से ऐसे का ऐसा ही है। सत्युग में जरा कम बिगड़ा हुआ वातावरण होता है, अभी अधिक असर है। रामचंद्रजी के समय में सीता का हरण करनेवाले लोग थे, तो अभी नहीं होंगे? यह चलता ही रहेगा। यह मशीनरी ऐसी ही है पहले से। उसे पता ही नहीं चलता, खुद की जिम्मेदारियों का भान नहीं है, इसलिए गैरजिम्मेदारीवाला मत बोलना। गैरजिम्मेदारीवाला आचरण मत करना। गैरजिम्मेदारीवाला कुछ भी मत करना, सबकुछ पोजिटिव लेना। किसीका अच्छा करना हो तो करने जाना, नहीं तो बुरे में तो पड़ना ही नहीं और बुरा सोचना भी नहीं। बुरा सुनना भी नहीं किसीका। बहुत जोखिमदारी है। नहीं तो इतना बड़ा जगत् उसमें
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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