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________________ (४०) वाणी का स्वरूप ३०७ ३०८ आप्तवाणी-४ (१) वाणी से खुद का स्व-रक्षण, स्व-बचाव करे। वह एक प्रकार कहलाता है। मोक्ष तक ले जाएगा। प्रश्नकर्ता : ऐसी वाणी किसीको प्राप्त करनी हो तो क्या करे? दादाश्री : हमें हररोज भावपूर्वक माँगना चाहिए कि मेरी वाणी से किसीको दु:ख नहीं हो और सुख ही हो। वैसे कॉज का सेवन करना चाहिए, तो प्राप्त होगी। वचनबल, ज्ञानी के (२) सामनेवाले को खुद कन्विन्स करे - वह एक तरीका है। सामनेवाला किसी भी धर्म का पालन करता हो, फिर भी वह सहमत हो जाए, ऐसा बोलना आना चाहिए न? इतनी शक्ति होनी चाहिए न? जितना ज्ञान समझ में आए उतनी शक्ति उत्पन्न होती है। और सामनेवाले को कन्विन्स करते समय थोड़े भी क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं होने चाहिए। नहीं तो, फिर सामनेवाला कन्विन्स होगा ही नहीं। कषाय उत्पन्न होना तो कमजोरी है। (३) कुछ लोग कच्चे होते हैं तो खुद सामनेवाले को समझाने जाते हैं, परन्तु सामनेवाले के प्रभाव से खुद ही बदल जाते हैं ! सामनेवाले ऐसाऐसा पूछते हैं कि खुद उलझ जाता है और मन में ऐसे पलट जाता है कि मुझे तो कोई ज्ञान ही नहीं है। हृदयस्पर्शी सरस्वती 'ज्ञानी पुरुष' की वाणी मीठी-मधुर, किसीको आघात नहीं पहुँचे, प्रत्याघात नहीं पहुँचे ऐसी होती है। किसीको किंचित् मात्र दुःख नहीं हो ऐसी वाणी निकले, वह सब चारित्र ही है। वाणी कैसे निकलती है उस पर से चारित्रबल पहचाना जा सकता है। बाकी दूसरी किसी चीज पर से चारित्रबल पहचाना नहीं जा सकता। यदि बुद्धि स्यादवाद हो तो स्यादवाद जैसे लक्षण लगते हैं, परन्तु संपूर्ण नहीं होते। जब कि ज्ञान-स्यादवाद हो, उसका चारित्र तो वीतराग चारित्र होता है। ज्ञान-स्यादवाद को हर एक धर्म के लोग प्रमाण की तरह स्वीकार करते हैं। उस वाणी में आग्रह जरा भी नहीं होता। यह तो विज्ञान है। जब वाणी सरस्वती स्वरूप हो जाए तब लोगों के हृदय को स्पर्श करती है, तभी तो लोगों का कल्याण होता है। वर्ल्ड में हृदयस्पर्शी वाणी मिलनी मुश्किल होती है। हमारी वाणी हदयस्पर्शी होती है, उसका एक शब्द ही यदि आपमें सीधा उतर जाए तो वह आपको ठेठ 'ज्ञानी पुरुष' के एक-एक शब्द में गज़ब का वचनबल होता है। वचनबल किसे कहते हैं कि मैं कहूँ कि 'सब खड़े हो जाओ', वचन के अनुसार सब लोग चलें, वह वचनबल कहलाता है। वचनबल से वचन सिद्ध होता रहता है। अभी तो वचनबल ही नहीं रहा न? बाप बेटे से कहेगा कि, 'तू सो जा।' तो बेटा कहेगा कि, 'नहीं, मैं सिनेमा देखने जा रहा हूँ।' वचनबल तो किसे कहते हैं कि आपका वचन निकले उस अनुसार ही घर के सब लोग करें। प्रश्नकर्ता : वचनबल किस तरह प्राप्त होता है? दादाश्री : वचनबल किस तरह चला गया है? इस वाणी का दुरुपयोग किया इसलिए। झूठ बोले, लोगों को झिडक दिया, कुत्ते को डराया, प्रपंच किए, उससे वचनबल टूट जाता है। झूठ बोलकर स्व-बचाव करे, सत्य के आग्रह और दुराग्रह करे, तब भी वचनबल टूट जाता है। बेटे को झिडके. 'साले. सीधा बैठ।' उससे बेटे के सामने वचनबल नहीं रहता। यदि वाणी ऐसी निकले कि सामनेवाले के हृदय में घाव करे तो दूसरे जन्म में वाणी बिल्कुल बंद हो जाती है, दस-पंद्रह वर्ष तक गूंगा रहता है। जितना आपको समझ में आए उतना सत्य बोलना। समझ में नहीं आए वहाँ नहीं बोले, उसमें हर्ज नहीं है। तो उतना वचनबल उत्पन्न होगा। 'किसीको दुःख हो वैसा नहीं बोलना है' ऐसा नक्की करना और 'दादा' के
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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