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________________ (३५) कर्म की थियरी २४९ २५० आप्तवाणी-४ दादाश्री : हर एक जन्म अनंत जन्मों का साररूप होता है। सभी जन्मों का इकट्ठा नहीं होता। क्योंकि नियम ऐसा है कि परिपाक काल होने पर फल पकना ही चाहिए। नहीं तो कितने सारे कर्म रह जाएँगे!! हिसाब, किस तरह चुकाया जाए? प्रश्नकर्ता : पिछले जन्म में किसीके साथ बैर बाँधा हो तो वह किसी जन्म में उससे मिलकर चुकाना पड़ता है न? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। उस तरह बदला नहीं चुकता। बैर बंधे तब अंदर राग-द्वेष होते हैं। पिछले जन्म में बच्चे के साथ बैर बाँधा हो तो हम सोचें कि वह किस जन्म में पूरा होगा? इस तरह वापिस कब मिलेंगे? यह तो इस जन्म में बच्चा बिल्ली बनकर आएगा। उसके लिए आप दूध रखो तो वह आपके मुंह पर नाखन मारकर चली जाएगी! ऐसा है यह सब! इस तरह, आपका बैर चुकता हो जाता है। परिपाक काल के लिए नियम हैं, इसीलिए थोड़े समय में हिसाब पूरा हो जाता है। यह हम आपसे कहते हैं कि अनंत जन्मों से आपने मोक्ष के लिए कुछ किया? उसका अर्थ यह है कि इस जन्म में आपका अनंत जन्मों का सार क्या है? आर्तध्यान और रौद्रध्यान होते रहते हैं वही न? ये जो भुगतने पड़ते हैं, वे ही कर्मफल हैं। दूसरा कुछ नहीं। कर्म को देखा नहीं जा सकता। कर्मफल देखे जा सकते हैं। लोग धौल मारें, सिर दु:खे, पेट दु:खे, लकवा हो जाए, उसे ही कर्म कहते हैं, ऐसा नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि इस देह का संग किया, उसकी छटपटाहट है। परन्तु वास्तव में वैसा नहीं है। देह कोई कुसंगी नहीं है। उसकी समझ यदि ऐसे सीधी मुड़े तो मोक्ष में जाने में हेल्प करती है, वह तो समझने में ही भूल है। मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा मानकर जो-जो किया जाता है, उससे संसार बना रहता है। तो कोई निमित्त नहीं होता है, तो उसके पीछे कौन-सा कर्म होता होगा? दादाश्री : सामनेवाले को नुकसान करने का पूर्व भव में भाव किया, उतना ही अपना नुकसान और वैसा भाव नहीं किया हो उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाता। सभी लोग लुट रहे हों, परन्तु यदि कोई ऐसा पवित्र मनुष्य हो, तो उसे कोई लट नहीं सकेगा। लटनेवाले भी लूट नहीं सकेंगे। इतना अधिक सेफसाइडवाला जगत् है यह ! आश्रव, निर्जरा : संवर, बंध प्रश्नकर्ता : कर्म खपाना, उसे क्या समझें? दादाश्री : कर्म का मूल क्या है? राग-द्वेष। जैनिज़म ने कहा है कि 'मोक्ष में जाना हो, तब राग, द्वेष और अज्ञान जाएँ तो मोक्ष होगा।' और वेदांतियों ने ऐसा कहा है कि, 'मल, विक्षेप और अज्ञान जाएँ तो मोक्ष होगा।' अज्ञान के बारे में दोनों कॉमन हैं। राग-द्वेष का आधार अज्ञान है। अज्ञान जाए तो सारे ही कर्म खपते जाएंगे। अज्ञान किससे जाता है? ज्ञान से। निजस्वरूप के अज्ञान से ही मोक्ष रुका हुआ है। कर्म करनेवाला कौन होगा? आपको क्या लगता है? प्रश्नकर्ता : आत्मा। दादाश्री : आत्मा क्रियावादी होता होगा? यह बहुत समझने जैसा है। कोई एक कर्म भी नहीं खपा सकता। संवर (कर्म का चार्ज होना बंद हो जाना) हो तब कर्म खपता है। यह तो, आश्रव (कर्म के उदय की शुरुआत) चल रहा हो वहाँ कर्म किस तरह खपेंगे? कर्म खपाना और आश्रव होते रहना वे दोनों विरोधाभास है। कर्म खपाने हों तो पहले संवर चाहिए, परन्तु जीवाजीव का भेद जाने बिना कुछ हो सके वैसा नहीं है। अशुभकर्म भोगता है और शुभकर्म बाँधता है, इतना हो सकता है। बाकी कर्म बंधने रुकते नहीं हैं। प्रश्नकर्ता : कईबार मनुष्य गिर जाता है, जल जाता है, उसमें सामने
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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