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________________ (३५) कर्म की थियरी २४३ २४४ आप्तवाणी-४ कर्म के कारण जीव छटपटाहट अनुभव कर रहे हैं। ऊपर से कहते हैं कि, 'इस भाई ने मुझे ऐसा किया, वैसा किया।' इससे कर्म डबल होते जाते हैं। यदि मूल बात को समझे कि, 'यह किसलिए हुआ? घरवाले परेशान करते हैं वह खुद का ही हिसाब है, भुगते उसकी भूल है' तो छटपटाहट कम हो जाएगी। प्रश्नकर्ता : संसार का चक्र कर्म की थियरी के अनुसार चलता है न? दादाश्री : यदि तू ज्ञानी है तो तेरे कर्म नहीं है और अज्ञानी है तो तेरे कर्म हैं। ऐसा है, 'आत्मा कर्म का कर्ता है' ऐसा जो मानता है तो वह भूल है। वास्तव में, आत्मा कर्म का कर्ता नहीं है। आत्मा यदि कर्म का कर्ता हो न तो छूटेगा ही नहीं कभी भी। यदि आत्मा कर्म का कर्ता होता तो मोक्ष में जा चुके सिद्ध भगवान भी वहाँ पर कर्म बाँधते ही रहते। कोई बाप भी कर्म बाँधनेवाला नहीं है या कोई बाप भी छुड़वानेवाला नहीं है, जो है वह तू ही है। प्रश्नकर्ता : आत्मा 'शुद्धात्मा' है, तो फिर कर्म किसे लेपायमान करते है? दादाश्री : करनेवाले को। प्रश्नकर्ता : यदि पुद्गल करता है तो वह तो यहीं पर रहता है दादाश्री : नहीं, उसमें कर्म की थियरी नहीं है। प्रश्नकर्ता : कर्म क्या हैं? कर्म की थियरी के ऊपर बैठे रहें तब भी समाधान नहीं होता। भगवान को कर्त्ता मानें तो भी फिट नहीं होता। तो कुछ और ही होना चाहिए, जो इन सबको रेग्युलर रखता है। वह क्या न? दादाश्री : वह तो 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' के आधार पर चलता है। पूरे वर्ल्ड को यही शक्ति चलाती है। ये शब्द एकदम समझ में नहीं आएँगे। बहुत बारीकी से सोचोगे तो समझ में आएगा। कर्म का कर्ता कौन? प्रश्नकर्ता : कर्म अर्थात् क्या? उसका मूल क्या है? कर्म कैसे बंधते दादाश्री : कर्म पुद्गल भी नहीं करता और आत्मा भी नहीं करता। वह तो आत्मा की हाजिरी से अहंकार खड़ा हो जाता है। वह अहंकार ही कर्म करता है। वह अहंकार ही कहता है, 'यह मैंने किया, मुझे सुख मिला, मुझ पर दुःख पड़ा, मुझे ज्ञान हुआ, मुझे अज्ञान हुआ।' वह सारा अहंकार ही करता रहता है। अहंकार गया इसलिए 'खद''उस' रूप हो गया। लोगों को समझ में आए इसलिए वीतरागों ने कहा है कि आत्मा व्यवहार से कर्ता है, निश्चय से अकर्ता है। 'बाय रिलेटिव व्यू पोइन्ट' आत्मा कर्म का कर्ता है। वह भी फिर, वह दिखनेवाले कर्मों का कर्त्ता नहीं है, भावकों का कर्ता है। ये दिखते हैं उन कर्मों को तो कुदरत, 'व्यवस्थित' करती है। दादाश्री : कर्त्ताभाव से कर्म बंधते हैं। मैं करता हूँ' वह कर्त्ताभाव है। करता है कोई और ही और आरोप करता है कि 'मैंने किया।' कॉलेज में पास होता है, वह दूसरी शक्ति के आधार पर होता है और कहता है कि मैं पास हुआ। वह आरोपित भाव है, उससे कर्म बंधते हैं। मैं चंदूलाल हूँ' वही कर्म है। प्रश्नकर्ता : तो कर्म कौन करता है? कर्म आत्मा को लगते हैं या पुद्गल को? 'बाय रियल व्यू पोइन्ट' आत्मा स्वभावकर्म का कर्ता है। खुद की रोंग बिलीफ़ उत्पन्न होती है कि 'मैं चंदूलाल हूँ'! इसलिए इस रोंग बिलीफ़ से कर्म बंधते हैं। पुद्गल अकेला कर्म नहीं कर सकता।
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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