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________________ २०२ आप्तवाणी-४ (२५) I & My 'मैं' किस तरह अलग हो? हम लोनावाला गए थे तब एक जर्मन 'कपल' मिले थे। क्या नाम था उनका? प्रश्नकर्ता : सुसान और लोइड। दादाश्री: उनसे मैंने पूछा कि, 'आपको''1' में डबना है या 'Mv' में डूबना है? ये '1' और 'My' के तालाब हैं। उनमें से '1' में डूबा हुआ कभी भी मरा नहीं और 'My' में डूबा हुआ कभी भी जीवित नहीं रहा। तब उन्होंने कहा कि, 'हमें तो फिर कभी भी नहीं मरें, वैसा होना है।' तब उन्हें हमने ऐसा समझाया कि, 'देयर इज़ नो वरी इन आइ, डोन्ट वरी फोर माइ। आइ इज़ इम्मोर्टल, माइ इज़ मोर्टल। इसलिए सेपरेट आइ एन्ड माइ!' ('मैं' में कोई चिंता नहीं है और 'मेरा' की चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं अमर है, मेरा नाशवंत है। इसलिए आइ और माइ को अलग कर दो।) आधे घंटे में तो वे समझ गए और खुश हो गए। प्रश्नकर्ता : परन्तु 'मैं' किस तरह अलग समझ में आएगा? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : 'आइ एम चंदूभाई' और 'माइ नेम इज़ चंदूभाई', यानी इन दोनों में विरोधाभास नहीं लगता? 'यह चंदूभाई तो मैं ही हूँ।' ऐसा बोलते हो तब यह हाथ भी आप ही हो? प्रश्नकर्ता : नहीं, हाथ तो मेरा है। दादाश्री : देखो, यह आप जिसे 'I' मानकर बैठे हो, उसमें से पहले नाम निकाल दो। फिर बाहर की जो-जो वस्तुएँ अलग ही दिखती हैं, वे निकाल दो। यह नाम हमसे अलग है, वह अनुभव में आता है? जहाँ-जहाँ 'My' आए वे सभी चीजें निकाल देने जैसी हैं। 'I' और 'My' दो अलग ही हैं, वे कभी भी एकाकार होते नहीं। 'नाम' निकाल देने के बाद This is my hand, This is my body, My eyes, My ears, ये सभी अवयव निकालते जाओ। स्थूल सारा कम करने के बाद My mind, My intellect, My Chit, My egoism (मेरा मन, मेरी बुद्धि, मेरा चित्त, मेरा अहंकार), सब निकाल दो। My-My सब निकाल दो तो बाकी जो बचता है, वही चेतन है। उस चेतन के अलावा कुछ भी नहीं रहना चाहिए। My भी पूरा पुद्गल है, पराया है। 'I' & 'My' complete अलग ही है | My is temporary adjustment and 'T' is permenant adjustment. प्रश्नकर्ता : 'My' को निकालने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : आपको मैं करने का रास्ता बताऊँ, पर आपसे होगा नहीं। यह complex है और काल विचित्र है। इसलिए आपको मेरी हेल्प लेनी पड़ेगी।'I' और 'My' में से आप सारा ही नहीं निकाल सकोगे। दृष्टिगम्य निकाल सकोगे। फिर बुद्धिगम्य निकाल सकोगे, परन्तु बुद्धिगम्य से आगे जो है, वह नहीं निकाल सकोगे। वहाँ ज्ञानी का ही काम है। अंतिम सूक्ष्मतम अहंकार आपसे नहीं निकल सकेगा। वहाँ हमारी ज़रूरत पड़ेगी। मैं आपको वह सब अलग करके दूंगा। फिर आपको मैं शुद्धात्मा हूँ वैसा Experience होता रहेगा। अनुभव होना चाहिए। और साथ-साथ दिव्यचक्षु भी देता हूँ, दादाश्री : आपका नाम क्या है? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : आप कौन हो?
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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