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________________ (२४) मोक्षमार्ग की प्रतीति १९७ १९८ आप्तवाणी-४ प्रश्नकर्ता : सद्गुरु की पहचान क्या है? दादाश्री : सद्गुरु वही हैं कि जिन्हें रात-दिन आत्मा का उपयोग हो, शास्त्र में पढ़ी नहीं हो, कहीं भी सनी नहीं हो, फिर भी अनुभव में आए, वैसी जिनकी अपूर्व वाणी हो! प्रश्नकर्ता : ये ही सद्गुरु हैं, वह किस तरह कह सकेंगे? दादाश्री : यहाँ पर ठंडक लगे तो समझना कि ये सद्गुरु हैं। प्रश्नकर्ता : सद्गुरु के लक्षण क्या हैं? दादाश्री : कषाय - क्रोध-मान-माया-लोभ रहित परिणाम ! प्रश्नकर्ता : इस काल में सद्गुरु कहाँ-कहाँ बिराजे हुए हैं? दादाश्री : ये आपके समक्ष बिराजे हुए हैं। प्रश्नकर्ता : सद्गुरु को प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : परम विनय। प्रश्नकर्ता : सम्यकत्व, बीजज्ञान अथवा बोधबीज, वे धर्म का मूल माने जाते हैं, तो उनकी प्राप्ति किसके माध्यम से होगी? दादाश्री : कषाय रहित सद्गुरु से! प्रश्नकर्ता : धर्म की उत्पत्ति यानी कि धर्म किससे होता है? हुआ। कषाय कम हों तो समझना कि धर्म हुआ। प्रश्नकर्ता : किस प्रकार धर्म में स्थिर हुआ जाए? दादाश्री : उपादान जागृत करने से स्थिर हुआ जाता है। प्रश्नकर्ता : मोक्ष का सरल उपाय क्या है? दादाश्री : कषाय रहित 'ज्ञानी पुरुष' की सेवा से मोक्षमार्ग सरल हो जाता है। प्रश्नकर्ता : कौन-कौन से साधनों से मोक्ष होता है? दादाश्री : ज्ञान से मोक्ष होता है। सद्ज्ञान से, आत्मज्ञान से मोक्ष होता है। मोक्ष - खुद अपना भान होने से प्रश्नकर्ता : जब तक अंतर में से, अंदर से आत्मा की प्रतीति नहीं हो, तब तक आत्मा के लिए उपकारी क्या है? आत्मा को समझ में आया कि ये मन-वचन-काया और सर्व पदार्थों से आत्मा भिन्न है. वैसे ही संसारी कार्यों का कर्ता-भोक्तापन छूटे नहीं, तब तक धर्म में प्रवृति के लिए क्या कार्य करने योग्य है? दादाश्री : 'ज्ञानी' की यदि प्रतीति हो गई तो आत्मा की प्रतीति हुए बगैर रहेगी ही नहीं। आत्मा की प्रतीति होने के बाद, उसका लक्ष्य बैठ जाने के बाद संसारी कार्यों का कर्ता-भोक्तापन छूट ही जाता है। संसारी कार्य तो अपने आप होते ही रहते हैं। प्रश्नकर्ता : व्यवहार में रहना और मोक्षमार्ग में जाना, वे दोनों बातें वर्तमान परिस्थिति में एक साथ हो सकें, वैसा संभव नहीं लगता है। दादाश्री : संभव नहीं है परन्तु अनुभव में आए वैसी बात है। जब आपको अनुभव में आएगा तब समझ में आएगा। ऐसे संभव नहीं लगता, परन्तु अनुभव में आए वैसी बात है। क्योंकि दोनों वस्तुएँ अलग हैं और जो वस्तुएँ अलग हों उनका भेद बरतता है। लोगों को तो ऐसा ही लगता दादाश्री : कषाय रहित सद्गुरु से! प्रश्नकर्ता : कौन-सी क्रिया से अथवा क्या करने से धर्म होता है? दादाश्री : ज्ञानक्रिया से या दर्शनक्रिया से धर्म होता है। प्रश्नकर्ता : धर्म का साधन क्या? धर्म किसे कहते हैं? दादाश्री : धर्म का साधन, उपादान जागृत होना चाहिए और धर्म किसे कहते हैं? खुद के कषाय कम हो जाएँ तो समझना कि धर्म उत्पन्न
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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