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________________ (२३) मोक्ष प्राप्ति, ध्येय १८७ १८८ आप्तवाणी-४ कितना बड़ा 'ब्लंडर' (मूलभूत भूल) कहलाएगा यह? प्रश्नकर्ता : वीतराग दशा प्राप्त करने के लिए सबसे प्रथम सीढ़ी कौन-सी है? दादाश्री : सच्चा तो मोक्ष में ले जाए वह है। प्रश्नकर्ता : मोक्ष तो फिर मिलेगा न? दादाश्री: अभी देह का मोक्ष नहीं है, पर आत्मा का मोक्ष तो है न? इस काल के कारण इस क्षेत्र से देह का मोक्ष रुका हुआ है, पर आत्मा का मोक्ष तो हो सकता है न? प्रश्नकर्ता : हाँ, हो सकता है। दादाश्री : तब तो इतना हो जाए तो भी बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्त करने के लिए क्या करें? आप उपाय बताइए। दादाश्री : उपाय मैं आपको बताता हूँ, पर वह आपसे होगा नहीं। घर जाकर भूल जाओगे। इस काल में लोगों की उतनी स्थिरता नहीं होती। इसके बदले तो हमारे पास आना, एक ही घंटे में आपको नक़द मोक्ष दे दूंगा। फिर आपको कुछ भी नहीं करना होगा। सिर्फ हमारी आज्ञा में रहना होगा। मोक्ष अर्थात् सनातन सुख.... प्रश्नकर्ता : मनुष्य ने मोक्ष के बारे में यों तो कुछ अनुभव नहीं किया होता है, फिर भी मोक्ष के लिए प्रयत्न करता है। दादाश्री : इस जगत् में जो सुख-दुःख का अनुभव होता है, वह तो संपूर्ण दुःख ही है। जो सुख लगता है, वह तो कल्पना से ही है। जो वस्तु आपको पसंद हो, वह वस्तु किसी और को दे दे, तब आपको दु:खदायी लगता है। ऐसा होता है या नहीं होता? सुख तो किसे कहते हैं कि जो सभी को सुख ही लगे। हर एक का अभिप्राय सच्चे सुख के लिए एक ही होता है। अब, जीव-मात्र सुख को ढूंढता है, दु:ख से दूर भागता है। दुःख पसंद नहीं है किसीको। अब फिर ये सुख तो टेम्परेरी हैं, वे उसे पसंद नहीं है सुख आने के बाद दु:ख आता है। लोगों को कौन-सा सुख पसंद है? सनातन सुख, कि जिसके आने के बाद कभी भी दुःख नहीं आए। सनातन सुख किसे कहेंगे? मोक्ष को, मुक्ति को! मोक्ष हो तभी सनातन सुख उत्पन्न होता है। बंधन से दु:ख है। ___ संसारी दुःख का अभाव, वह मुक्ति का प्रथम अनुभव कहलाता है। वह हम आपको 'ज्ञान' देते हैं, तब वैसा आपको दूसरे ही दिन से हो जाता है। फिर यह शरीर का बोझ, कर्मों का बोझ वे सब टूट जाते हैं, वह दूसरा अनुभव। फिर आनंद ही इतना अधिक होता है कि जिसका वर्णन ही नहीं हो सकता। सिद्धगति, स्थिति कैसी? प्रश्नकर्ता : मोक्ष मिलने के बाद हमारी स्थिति क्या रहती होगी? दादाश्री : परमात्म स्वरूप। प्रश्नकर्ता : फिर उसे कुछ कार्य करना रहता है क्या? दादाश्री: कोई कार्य होता ही नहीं वहाँ पर। अभी भी आपका आत्मा कुछ भी कार्य नहीं कर रहा है। यह जो कार्य कर रहा है, वह अज्ञान भाव है, मिकेनिकल भाव है। आत्मा क्रियाकारी है ही नहीं, स्वयं ज्ञायक स्वभाव का है। वहाँ सिद्धगति में सिर्फ ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद होता है। वहाँ सिद्धगति में इतना अधिक सुख है कि वहाँ के निरंतर सुख में से एक मिनिट का सुख यदि यहाँ पृथ्वी पर पडे तो इस दुनिया में एक वर्ष तक तो आनंद-आनंद की सीमा न रहे! मोक्ष का स्वरूप प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्त करने के बाद फिर कभी भी जन्म नहीं लेते?
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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