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________________ (१९) यथार्थ भक्तिमार्ग १५३ १५४ आप्तवाणी-४ स्वरूप का भान करवाती है, 'मैं चंदूलाल हूँ, मैं लोहे का बड़ा व्यापारी हूँ', वैसा भान करवाती है। बुद्धि पराभक्ति नहीं होने देती। यहाँ तो ज्ञान देने के बाद फिर पराभक्ति ही होती है। पराभक्ति तो किसे कहते हैं कि जो आत्मा के लिए की जाए, शुद्धात्मा के लिए, आत्महेतु के लिए की जाए, वह। आत्महेतु के लिए जागे-वह नींद कहलाती है, आत्महेतु के लिए खाए-वह उपवास और आत्महेतु के लिए भक्ति करे वह पराभक्ति है। मोक्ष : ज्ञान से या भक्ति से? प्रश्नकर्ता : भक्तिमार्ग से मोक्ष है या ज्ञानमार्ग से मोक्ष है? दादाश्री : भक्तिमार्ग से आप क्या समझे? ज्ञानमार्ग शुरू होने के बाद भक्ति आती है। कोई स्टेशन का रास्ता दिखाए. फिर आप चलोगे न? रास्ते का ज्ञान होने के बाद उस रास्ते पर चलना, वह भक्ति है। भक्ति शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है? उस शब्द के अंदर आश्रय समा जाता है। इन सभी को ज्ञान दिया है, वे सभी भक्तिमार्ग में भी हैं। जिसका आश्रय लिया उसकी भक्ति करनी है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् भक्तिमार्ग भी अक्रममार्ग में है? दादाश्री : 'यह' पराभक्ति है। अक्रममार्ग में आत्मा प्राप्त कर लेने के बाद जो भक्ति करते हैं, वे खुद अपने आप की ही भक्ति करते हैं। ये माला बनाते हैं, वे भी खुद की ही भक्ति करते हैं, फिर भले ही माला हमें चढ़ाएँ! 'ज्ञानी पुरुष' की भक्ति खुद के आत्मा की ही भक्ति है। जब तक आपका आत्मा संपूर्ण व्यक्त नहीं हुआ, तब तक 'ज्ञानी परुष' ही आपका आत्मा हैं। 'ज्ञानी पुरुष' शल्य रहित होते हैं। खुद प्रसन्नचित्त होने के कारण, सामनेवाले को भी उन प्रसन्नचित्त के दर्शन करने से ही आनंद प्रकट होता है। 'ज्ञानी' के दर्शन मात्र से अनेक जन्मों के पाप भस्मीभूत हो जाते हैं! पराभक्ति : अपराभक्ति पूरा जगत् भक्ति ढूंढ रहा है, वह अपराभक्ति है। जिस भक्ति में थोड़ा-सा भी बुद्धि का प्रवेश नहीं हो, वह मोक्ष की भक्ति कहलाती है। भक्ति मोक्ष की होनी चाहिए। बुद्धि का प्रवेश हो, तो वह अपराभक्ति होती है। बुद्धि बाहर निकल गई, तो पराभक्ति है। यहाँ' पर पूरे दिन जो चलती है वह पराभक्ति है। पराभक्ति का फल मोक्ष है। अपना तो यह मोक्षमार्ग है। जहाँ मोक्षमार्ग नहीं है, वहाँ संसार मार्ग है। जिस भक्ति में बद्धि आती है, तब वह इमोशनल रखती है। मैं 'पन का भान करवाती है, 'रिलेटिव'
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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