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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ करना तो बहुत बड़ा जोखिम लेने जैसा हुआ। जैसा है वैसा कह देना चाहिए। यह सब किस ने खड़ा किया है? तब कहें, सामनेवाले की समझ में नहीं आता, तब तक स्वार्थ में लगे रहते हैं, इसलिए। संसार में शांति रहे इस हेतु से बुरा संग्रह किया, जो मोक्ष में जाते हुए, काट-काटकर, पीड़ा देकर वह माल खाली होगा। यह माल तो बहुत परेशान करेगा। सीधे-सीधे मोक्ष में नहीं जाने देगा। ये वणिक बुद्धिवाले किसी जीव को नहीं मारते और किसी की जेब से कुछ निकालते नहीं है। मतलब स्थल चोरियाँ और स्थूल हिंसा बंद कर दीं, मगर सूक्ष्म चोरी ओर सूक्ष्मतम चोरियाँ थोक में होती हैं। यह स्थूल चोरीवालों की जमात तो ऊपर उठेगी, मगर यह सूक्ष्म चोरीवालों की जमात ऊपर नहीं उठेगी। यह ट्रिकवाला तो बैठा हो अपने घर में, पर ऐसी सूक्ष्म मशीनरी काम में लगाई होती है कि बेचारे किसानों की हड्डी-चमड़ी ही बचे और सारा लहू वह ट्रिकवाला चूस खाता है। भगवान ने इसे सूक्ष्म हिंसा बताया है। बंदक से मार डालनेवालों का कुछ होगा, मगर इन ट्रिकबाजों का हल निकलनेवाला नहीं है, ऐसा भगवान ने कहा है। चाहिए। मन से, वाणी से और देह से एक ही होना चाहिए, जुदाई नहीं होनी चाहिए। यह घड़ी आपने नब्बे रुपये में खरीदी और एक सौ दस में बेचने को निकाली। इसमें ट्रिक करके कहता है कि मैंने तो एक सौ दस रुपये में खरीदी है। अत: एक सौ दस में ही बेचते हैं। उसके बजाय सहीसही बता दे कि नब्बे में ली है और एक सौ दस में बेचनी है, सामनेवाले को लेनी होगी, तो एक सौ दस रुपये देकर ले जाएगा। व्यवस्थित' ऐसा है कि एक सौ दस रुपये आपको मिलनेवाले हैं, तो आपके ट्रिक नहीं करने पर भी आ मिलेंगे। सब यदि इतना हिसाबी है, तो मुफ्त में ट्रिक आजमाकर जिम्मेवारी क्यों मोल लेनी चाहिए? यह तो ट्रिक का जोखिम मोल लिया। उसका फल अधोगति है। लक्ष्मीजी के अंतराय क्यों होते हैं? ये ट्रिकें आजमाया करते हैं इसलिए। आदत-सी हो गई है ट्रिकें आजमाने की। वर्ना वणिक तो व्यापार करते हैं, चोखा व्यापार करते हैं। उन्हें तो कहीं नौकरी करना होता होगा कहीं? चोखा व्यापार करें इसलिए हम परम हित की बात बताते हैं, टिकें इस्तेमाल करनाा बंद करें। चोखा व्यापर करें। ग्राहकों से साफ कह दें कि इसमें मेरे पंद्रह प्रतिशत मुनाफा जुड़ा है, आपको चाहिए, तो ले जाइए। भगवान ने क्या बताया है? यदि तुझे तीन सौ रुपये मिलनेवाले हैं, तो चाहे तू चोरी करे, ट्रिक आजमाए या फिर चोखा रहकर धंधा करे, तझे उतने ही मिलेंगे। उसमें एक पैसा भी इधर-उधर नहीं होगा। फिर ट्रिकें और चोरी की जिम्मेदारी क्यों मोल लें? थोड़े दिनों न्याय से व्यापार करके देखो। शुरूशुरू में छह-बारह महीने तकलीफ होगी, पर बाद में फर्स्ट क्लास चलेगा। लोग भी समझ जाएँगे कि इस मनुष्य का धंधा चोखा है, मिलावटवाला नहीं है। तब बिन बुलाए, अपने आप आपकी दुकान पर ही आएंगे। आज आपकी दुकान पर कितने ग्राहक आनेवाले हैं, यह व्यवस्थित 'व्यवस्थित' बंदूक से मारनेवाला तो नर्क में जाकर वापस ठिकाने पर आ जाएगा और मोक्ष की राह खोज निकालेगा। जब कि ट्रिक मारनेवाला संसार में अधिक से अधिक गहरे उतरता जाएगा। लक्ष्मी के ढेर लगेंगे, उसका दान करता रहेगा। बीज उगते ही रहेंगे और संसार चाल का चाल ही रहेगा। यह तो पॉलिश्ड ट्रिकें हैं। ज्ञानी पुरुष में एक भी ट्रिकवाला माल ही नहीं होता। वणिक बुद्धि ट्रिक के आधार पर ही खड़ी है न? उसके बजाय नहीं आता हो, वह अच्छा। ज्ञान से पहले, मैं लोगों को ट्रिकें सिखलाया करता था, वह भी सामनेवाला फँस गया हो, उसके ऊपर करुणा आती थी, इसलिए। पर बाद में वह भी बंद कर दिया। हमारे ट्रिक नहीं होतीं। जैसा है वैसा होना
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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