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________________ आप्तवाणी-१ ७४ आप्तवाणी-१ मौन पालते है और भीतर अशांति रहा करती है, वे मुनि कैसे कहलाएँ? हम महामुनि हैं! संपूर्ण मौन हैं! इसे परमार्थ मौन कहते हैं। हित, मित और प्रिय - इन तीनों गुणोंवाली वाणी ही सत्य है और शेष सभी असत्य है। व्यवहार वाणी में यह नियम लागू होता है। नटुभाई यह हमारी वाणी आप उतार लेते हैं, पर वह आपको पचास प्रतिशत फल देगी और अन्य कोई पढ़ेगा, तो उसे दो प्रतिशत भी फल नहीं मिलेगा। यह बुलबुला जब तलक फूटा नहीं है, तार जोड़कर अपना काम निकाल लो। हम सभी से कहते हैं कि हमारे पीछे हमारी मूर्ति या फोटो मत रखना। हम अपने पीछे ज्ञानीओं की वंशावली छोड जाएँगे. हमारे वारसदार छोड़ जाएँगे और बाद में ज्ञानिओं का लिंक चालू रहेगा। इसलिए सजीवन मूर्ति को खोज लेना। उसके बगैर हल निकलनेवाला नहीं है। (प्रत्यक्ष का महत्व समझने के लिए पूज्य दादाश्री ने ऐसा कहा अंतःकरण सारी दुनिया जिस साइंस की खोज में है, उस साइंस का सर्व प्रथम संपूर्ण स्पष्टीकरण हम देते हैं। मन को समझना मुश्लिक है। मन क्या है? बुद्धि क्या है? चित्त क्या है? अहंकार क्या है? उन सभी का यथातथ्य स्पष्टीकरण हम देते हैं। शरीर में से जो कभी बाहर नहीं निकलता है, वह मन । मन तो अंदर बहुत ही उछल-कूद करता है। भाँत-भाँत के पैम्फलेटस दिखलाता है। मन का स्वभाव भटकना नहीं है। लोग, मेरा मन भटकता है, ऐसा कहते हैं, वह गलत है। जो भटकता है, वह चित्त है। चित्त अकेला ही इस शरीर से बाहर जा सकता है। वह ज्यों की त्यों तसवीरें खींचता है। उसे देख सकते हैं। बुद्धि सलाह देती है और डिसिज़न बुद्धि लेती है और अहंकार उसमें हस्ताक्षर कर देता है। मन, बुद्धि और चित्त, इन तीनों की सौदेबाजी चलती है। बुद्धि इन दोनो में से जिस से भी मिल जाती है, चित्त के साथ या मन के साथ, उसमें अहंकार हस्ताक्षर कर देता है। मान लीजिए, आप सान्ताक्रुज में बैठे हैं और भीतर मन ने पैम्फलेट दिखलाया कि दादर जाना है। तब तुरंत चित्त दादर पहुँच जाएगा और दादर की हूबहू फोटो यहाँ बैठे-बैठे दिखाई देगी। फिर मन दूसरा पैम्फलेट दिखाएगा कि चलिए बस में चलेंगे, तब चित्त बस देखकर आएगा। फिर मन तीसरा पैम्फलेट दिखाएगा कि टैक्सी में ही जाना है। फिर चौथा पैम्फलेट दिखलाएगा कि ट्रेन में जाएँ। तब चित्त ट्रेन, टैक्सी, बस सभी देख आता है, उसके बाद चित्त बार-बार टैक्सी दिखाता रहेगा। अंत में बुद्धि डिसिजन लेगी कि टैक्सी में ही जाना है। अहंकार इन्डिया के प्रेसिडेन्ट की तरह हस्ताक्षर कर देगा, और तुरंत ही कार्य हो जाएगा, और आप टैक्सी के लिए खड़े हो जाएंगे। जैसे ही बुद्धि ने अपना डिसिजन दिया कि तुरंत मन पैम्फलेट दिखाना बंद कर देगा। फिर दूसरे विषय का पैम्फलेट दिखाएगा। बुद्धि + मन की बात पर अहंकार हस्ताक्षर करेगा या बुद्धि + चित्त की बात पर अहंकार हस्ताक्षर करेगा। मन और चित्त में बुद्धि तो कॉमन रूप से रहती है, क्योंकि बगैर बुद्धि के किसी भी कार्य का डिसिजन नहीं आता और डिसिज़न आने पर अहंकार हस्ताक्षर कर देता है और कार्य होता है। बिना अहंकार के तो कोई काम ही नहीं होता, पानी पीने को भी नहीं उठा जा सकता। यह अंत:करण तो पार्लियामेन्टरी सिस्टम है। अंत:करण चार वस्तुओं का बना हुआ है। १. मन २. बुद्धि ३. चित्त और ४. अहंकार। चारों रूपी हैं और पढ़े जा सकते हैं। चक्षुगम्य नहीं हैं, ज्ञानगम्य हैं। कम्पलीट फिज़िकल हैं। शुद्ध आत्मा और उनका कोई लेना-देना नहीं है। वह पूर्णतया अलग ही है। हम पूर्ण रूप से अलग हुए हैं, इसलिए उनका दर असल वर्णन कर सकते हैं। किसी भी कार्य की पहली फोटो, पहली छाप अंत:करण में पड़ती है और फिर वह बाह्यकरण में तथा बाह्य संसार में दृश्यमान होती है।
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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