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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ लोगों की भलाई करना, ओब्लाईज (परोपकार) करना, दिल सच्चा नीतिमय रखना, वह शुभ उपयोग। सिर्फ शुभ उपयोग तो किसी को ही होता है। हर जगह शुभाशुभ उपयोग होता है। शुभाशुभ उपयोगवाले, फर्स्ट क्लास के पैसेंजर। उसका फल मनुष्यगति। जब कि सिर्फ शुभ उपयोग में ही रहें, वे तो एअर कंडिशन्ड क्लास के पैसेंजर जैसे, वे देवगति पाते (४) शुद्ध उपयोग : शुद्ध उपयोग किसे कहते हैं? शुद्ध उपयोगी शुद्ध को ही देखते हैं। अंदर का माल देखते हैं, पैकिंग नहीं देखते। तत्त्वदृष्टि से देखना, वही शुद्ध उपयोग। शद्ध उपयोग आत्मा प्राप्त करने के बाद ही शुरू होता है। उपयोग संपूर्ण शुद्ध हो जाए, तब केवलज्ञान होता है। शुद्ध उपयोग का फल, मोक्ष। हम संपूर्ण शद्ध उपयोगी हैं। एक महाराज ने मुझसे पूछा, 'आप कार में घूमते हैं, तो कितने ही जीव कुचले जाते हैं, आपको इसका दोष नहीं लगता?' मैंने उनसे कहा, महाराज! आपके शास्त्र क्या कहते हैं, 'शुद्ध उपयोगी और समताधारी, ज्ञान-ध्यान मनोहारी रे, कर्म कलंक कु दूर निवारी, जीव वरे शिवनारी रे।' हम शुद्ध उपयोगी हैं। शुद्ध उपयोगी को हिंसा होती है? महाराज बोले, 'नहीं!' मैंने कहा कि हमें दोष नहीं लगता, आपको लगता है, क्योंकि 'मैं महाराज हूँ, ये पैर मेरे हैं और ये जंतु मुझसे कुचले जाते हैं।' ऐसा ज्ञान, ऐसा भान आपको निरंतर बरतता है। अरे! नींद में भी बरतता है। इसलिए आपको दोष लगता है, जब कि हम निरंतर शद्ध उपयोग में ही रहते हैं। यह देह मेरी है, ऐसा एक क्षण के लिए भी हमें नहीं होता। पूरा मालिकीभाव ही हमारा उड़ गया होता है। इसलिए हमें दोष नहीं लगता। आपका एक प्लॉट हो जिसे आठ दिन पहले आपने लल्लूभाई को बेच दिया हो। दस्तावेज भी कर दिया हो। और एक दिन पुलिस आपके घर हथकड़ी लेकर आती है और आपसे कहती है, 'चलिए चंदूभाई! आपको पुलिस स्टेशन आना होगा। आप पूछेगे, 'क्यों भैया, क्या गुनाह किया है मैंने?' इस पर पुलिस कहे, 'आपके प्लॉट में से दस लाख का तस्करी का सोना बरामद हुआ है, यही आपका गनाह है।' सुनते ही तुरंत 'हाश' करके, पुलिस को आप लल्लूभाई को प्लॉट बेचा, उसका दस्तावेज देखएँगे। देखते ही पुलिस समझ जाएगी और ऊपर से आपसे माफी माँगकर चली जाएगी और पहुँचेगी लल्लूभाई के पास। ऐसा हमारा है। इस देह के भी हम मालिक नहीं हैं। हम सारे ब्रह्मांड के स्वामी हैं, पर मालिकीभाव हमारा एक भी प्लॉट में नहीं होता। सारे ब्रह्मांड को थरथराने की शक्ति 'हममें' है, पर इस अंबालाल मूलजीभाई में सेका हुआ पापड़ तोड़ने की शक्ति भी नहीं है! मनुष्यपन का डेवलपमेन्ट इस संसार में मनुष्यपन के चौदह लाख स्तर हैं। उनमें से ऊपर के पचास हजार स्तर ही यह बात सुनने लायक हैं। मनुष्यगति में ही होते हैं, परंतु सबका डेवलपमेन्ट एक सरीखा नहीं होता। हरेक का स्टैन्डर्ड अलग-अलग होता है। उनके डेवलपमेन्ट के अनुसार उनके भगवान होते हैं। इसलिए नियम से ही उन्हें उस भगवान की भक्ति प्राप्त होती है। शास्त्र भी उनके डेवलपमेन्ट के आधार पर आ मिलते हैं। ये सारे मनुष्य डेवलपमेन्ट के आधार पर अपने स्टैन्डर्ड में होते हैं और उनके पास, उनके स्टैन्डर्ड के हिसाबवाले भगवान भी होते हैं। वे स्टैन्डर्ड लौकिक धर्म-रिलेटिव धर्म के हैं। माया और मुक्ति ! 'माया माथे शींगड़ा, लंबे नव नव हाथ, आगे मारे शींगड़ा ने पीछे मारे लात।' माया क्या कहती है? मेरा मान नाम का लडका जब तक जीवित है, तब तक मेरी सारी संतानों को मार दोगे, फिर भी वे सजीवन हो जाएँगे। क्रोध-मान-माया (कपट)-लोभ-राग-द्वेष, वे छह, मेरे बेटे और
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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