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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ गए हैं कि फिर लोग ही ऐसा कहेंगे कि हमें ये साइंटिस्ट नहीं चाहिए। ये सभी क्रांति की तैयारियाँ हो रही हैं। जहाँ-जहाँ एक्सेस हुआ, उन सभी से थक जाते हैं। अधिक बैठना हुआ, तो उससे भी थकान होती है। अधिक सोने से भी थकान होती है। दुःख और सुख रिलेटीव(सापेक्ष) हैं। कोई सेठ धूप में घूम रहा हो, फिर बबूल मिले, तब उसकी छाँव में भी ठंडक लेने बैठेगा। यदि उसे वहीं चार घंटे बैठने को कहें, तब वह मना करेगा, क्योंकि बैठे-बैठे थक जाते है। शिकार हैं और भारत देश बिलो नॉर्मल फ़ीवर से ग्रस्त है। नॉर्मालिटी चाहिए। ये फ़ॉरेनवालों की खोजबीन अबव नॉर्मल हो रही है पर उन्हें जो चाहिए वह मिलता नहीं है। यह क्या निर्देश करता है कि वे भटक गए हैं। अभी तो वे इतने अबव नॉर्मल हो गए हैं कि अड़सठ मील और तीन फ़लाग पर कार पंक्चर हो जाए, तो उसकी खबर देने के साधन वहाँ होते हैं। अरे, देह को जिसकी ज़रूरत है, ऐसे साधन खोज निकाल न? ये मर्दो को रोजाना दाढ़ी बनानी पड़ती है, इसलिए दाढी उगे नहीं ऐसा कुछ खोज निकाल न! देह विषयवाली है, इसलिए देह को जिसकी ज़रूरत है, वह उसे देना चाहिए। एक साथ बहुत बरसात होती रहे, तो क्या होगा? सर्वत्र नुकसान ही होगा न? अबव नॉर्मल से नुकसान होता है। लोग तो जरा-सी गर्मी ज्यादा पड़े, तो शोर मचाते है। मेरा एक मित्र एक दिन शोर मचा रहा था कि बहुत गर्मी है, बहुत गर्मी है। इस पर मैंने उससे पूछा, 'यदि ताप के कंट्रोल स्टेशन पर तुम्हें कंट्रोलर के रूप में रखें, तो आज तुम कितना ताप रखते?' वह कहता है, 'इतना ही रखता।' तब मूर्ख! तू भी इतनी ही गर्मी रखता, तो शोर क्यों मचाता है? वह तो नैचुरल है। जब जितनी ज़रूरत हो, उतना सहजरूप से मिलता रहता है, अपने आप ही। पर ये लोग उसे बदुआ देकर उसमें बाधा डालते हैं। एक आदमी अच्छे कपड़े पहनकर बाहर गया हो और रास्ते में बरसात आई, तो वह बरसात को खरी-खोटी सनाता है। कुछ कहते है, आज बेटी की शादी है, बरसात नहीं आए, तो अच्छा और वहाँ खेतों में बेचारा किसान चातक दृष्टि से बरसात की राह देख रहा होता है। ऐसा विरोधाभास उत्पन्न होने पर तो कुदरत को भी बाधा पहुँचेगी। आपके भाव और नेचर का ऐडजस्टमेन्ट दोनों के आधार पर तो सारा तंत्र चल रहा है, इसलिए नेचर (प्रकृति) में दखलंदाजी मत करना। अपने आप नेचरली (प्राकृतिक रूप से) सब आ मिलेगा। कल सबेरे सूरज नहीं निकलेगा, तो क्या होगा?' ऐसा विचार किसी को आता है? ऐसा विचार आए तब भी क्या हो? निरी दखलंदाजी, इसलिए नेचर में दखलंदाजी मत करना। ये सभी बाह्य विज्ञान में इतने आगे बढ़ गए हैं, अबव नॉर्मल हो हिन्दुस्तान में साढ़े सात फीट ऊँचा मनुष्य आए, तो वह लम्बा लगता है। पर यदि हम सात फीट ऊँचाईवालों के देश में जाएँ, तो नाटे लगेंगे। यह तो सब रिलेटिव है। एक के आधार पर दूसरा लम्बा-नाटा लगता है। कोई मनुष्य पचपन साल तक पढ़ाई करता रहे, तो लोग क्या कहेंगे? अरे! तू पढ़ाई ही करता रहेगा, तो शादी कब करेगा? वह अबव नॉर्मल। जब कि दो साल के बालक का ब्याह रचाए, तो वह बिलो नॉर्मल। भौतिक डेवलपमेन्ट-आध्यात्मिक डेवलपमेन्ट हिन्दुस्तानी लोगों को, फ़ॉरेनवाले तिरस्कृत करते हैं। उन्हें अन्डरडेवलप्ड (पिछड़ा) कहते हैं। तब मुझे कहना पड़ता है कि तू अन्डरडेवलप्ड है। अध्यात्म में तू अन्डरडेवलप्ड है और भौतिक में त फुल्ली डेवलप्ड है। भौतिक में तुम्हारा देश फल्ली डेवलप्ड है। जब कि भारत देश, भौतिक में अन्डरडेवलप्ड (अविकसित) है और अध्यात्म में फुल्ली डेवलप्ड (पूर्ण विकसित) प्रजा है। यहाँ के जेबकतरे को भी मैं एक घंटे में भगवान बना सकता हूँ। बाहर की सारी की सारी प्रजा आंतर्विज्ञान में अन्डरडेवलप्ड है, यह बात तुम्हें कैसे समझाऊँ? फ़ॉरेन के लोगों में क्रोध-मान-माया-लोभ अभी डेवलप हो रहे
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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