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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ २७ भी तो पूरण-गलन ही है। बैंक में दो अकाउन्ट होते हैं या एक? दो, ! क्रेडिट और डेबिट ! तब भैया तू अकेला क्रेडिट ही क्यों नहीं रखता? नहीं रख सकते। नियम से ही, जिस-जिसका पूरण होता है, उसका गलन होना ही है। हम जो खाते हैं, वह पूरण है और संडास जाते हैं, वह गलन है। पानी पीते हैं, वह पूरण है और बाथरूम जाते हैं, वह गलन है। मन में विचारों का आना-जाना भी पूरण-गलन ही है। ___भोजनालय-शौचालय, पूरण-गलन और शुद्धात्मा ! इसके अलावा ज्ञानी को इस संसार में कुछ दिखता ही नहीं। भोजना यानी भोगने की. इस्तेमाल करने की वस्तु, शौचालय यानी भोगने के बाद छोड़ देने की वस्तु। शेष रहा, वह पूरण-गलन और शुद्धात्मा। इसमें सभी का समावेश हो जाता है। यह तो अकर्मी खाता ही रहता है, और फिर जुलाब हो जाता है। यदि इस प्रकार उसका गलन नहीं हो तो? गैस और अपच। वैसा ही हाल पैसों का होनेवाला है, इसका किसी को भी भान नहीं है। किसी भी प्रकार का गलन नहीं हुआ हो, ऐसा कोई हो, तो उसे खोज निकालिए। महीसागर नदी भी नर्मदा से कहती है, मेरे यहाँ जल खूब आता है और जाता है। पर गरमी का मौसम आते ही वहाँ भी आरपार (सूखा)। मैंने कईं डॉक्टरों से पूछा हुआ है कि ये जो नाखून बढ़ते हैं, उनका क्या कारण है? इस पर वे चाहे जो कहते हैं, कैल्शियम के कारण आदि। मगर ऐसा नहीं है। सही अर्थों में तो वह गलन ही है। आहार में हड्डियों के सांयोगिक प्रदार्थ आ मिलते हैं। जिससे हड्डियों का पूरण होता रहता है। उसका नाखूनों के जरिए फिर गलन होता है। जो निरुपयोगी होता है, उसका गलन नियम से ही हो जाता है। वैसे ही इस देह में भी परमाणुओं का पूरण-गलन होता ही रहता है। मनुष्य दस साल का था, तब उस देह में जो परमाणु थे, उनमें से एक भी परमाणु पच्चीसवें साल के देह में नहीं होते। पुराने परमाणुओं का गलन होता है और नये का पूरण होता है। पूरण-गलन की परंपरा अविरत रूप से चलती ही रहती है। पाप का पूरण करते हैं, फिर जब उसका गलन होगा, तब पता चलेगा। तब तुम्हारे छक्के छूट जाएँगे। अंगारों पर बैठे हों ऐसा अनुभव होगा। पुण्य का पूरण करेगा और जब उसका गलन होगा, तब जानोगे कि कैसा अनोखा आनंद आता है? अतः जिस-जिसका पूरण करो, तब सोच-विचारकर करना कि गलन होने पर परिणाम क्या होगा! पूरण करते समय निरंतर ख्याल रखना। पाप करते समय, किसी से धोखा करके पैसा जमा करते समय निरंतर ख्याल रखना कि उसका भी गलन होनेवाला है। वह पैसा बैंक में रखोगे, तो वह भी जानेवाला तो है ही। उसका भी गलन तो होगा ही, परन्तु वह पैसा जमा करते समय जो पाप किया, जो रौद्रध्यान किया, वह उसकी दफाओं के साथ आनेवाला है। जब उसका गलन होगा, तब तुम्हारा क्या हाल होगा? किसी के रोकने से लक्ष्मीजी रुकनेवाली नहीं हैं। लक्ष्मीजी तो भगवान की पत्नी हैं। उन्हें भी रोककर रखने में लगे हो? पहले गौने के लिए आई बहू को यदि ससुराल से वापस मायके नहीं जाने दें, तो क्या हाल होगा उस बेचारी का? ऐसा व्यवहार लोग लक्ष्मीजी के साथ करने लगे हैं। इसलिए लक्ष्मीजी भी अब ऊब गईं हैं। बड़ौदा के स्टेशन पर जब लक्ष्मीजी हमें मिलती हैं, तब हाथ जोड़कर कहते हैं कि मामा की पोल और छठा घर, जब पधारना चाहें पधारिए और जब जाना चाहें तब चले जाना। वे हमसे कहती हैं कि मैं सेठ लोगों से अब बहुत ही त्रस्त हो गई हूँ इसलिए अब मैं आपके महात्माओं के घर ही जाऊँगी, क्योंकि आपके महात्माओं के वहाँ जाती हँ, तब फूलमाला से मेरा स्वागत करते हैं और वापस लौटती हैं, तब भी फूलमाला पहनाकर बिदा करते हैं। जो-जो लोग मुझे रोककर रखते हैं, अब मैं वहाँ नहीं जाऊँगी और जो लोग मेरा तिरस्कार करते हैं, वहाँ पर तो आगे कितने ही जन्मों तक मैं पैर तक नहीं रखंगी। रुपये तो आते हैं और जाते हैं। दस साल के बाद वह लक्ष्मी नहीं रहती। वह तो परिवर्तित होती ही रहती है। सारा का सारा संसार आकुलता और व्याकुलता में ही फँसा हुआ है। फिर चाहे वह त्यागी हो या संसारी, निराकुलता किसी जीव को होती
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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