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________________ आप्तवाणी-१ २१७ २१८ आप्तवाणी-१ पुरुष मिलें और हाथ खींचकर बाहर निकालें, तब निकल सकते हैं। इस भ्रांति के फँसाव में से तो भ्रांति जाने पर ही छट सकते हैं। मगर वह भ्रांति जाए कैसे? वह तो ज्ञानी पुरुष झकझोरकर जगाएँ, तभी भ्रांति जाती है। उनके सिवाय और किसी का काम नहीं है यह। उनके बिना तो ज्योंज्यों छूटने जाएँ त्यों-त्यों ज्यादा और ज्यादा फँसते जाते हैं। चार्ज और डिस्चार्ज दर्शनमोह अर्थात् चार्ज मोह और चारित्रमोह अर्थात् डिस्चार्ज मोह। पानी, दर्शन मोह है और बर्फ चारित्रमोह है। चार्ज किस कारण से होता वहीं का वहीं, दुकान की साड़ी में ही होता है। इस पर पति भी चंदन से पूछता है कि आज तबियत ठीक नहीं क्या? मँह उतर गया है न! उस बेचारे को क्या पता कि यह जो घर में घूम-फिर रहा है, वह तो पुतला ही है, चंदन का चित्त तो दुकान पर साड़ी में है। इसे ही भगवान ने 'चार्ज-मोह' कहा है। चेतन जड़ को स्पर्शा कि खुद के स्वरूप का भान चला जाता है और इसलिए चार्ज होता है। जो-जो बहुत याद आते हैं, उनमें तन्मयाकार होता है, उसके कारण ही चार्ज होता रहता है। याद क्या आता है? जिस पर बहुत राग होता है अथवा तो बहुत द्वेष होता है। जो डिस्चार्ज हो रहा है, उसके प्रति राग-द्वेष करें, तो आत्मा की स्वभाविक कल्पशक्ति विभाविक रूप से विकल्प होकर उसमें मिलती है, उससे चार्ज होता रहता है। ऐसे ही संसारक्रम चलता रहता है। भूल के कारण चार्ज हुआ है, भ्रांति से भरा गया है, वह डिस्चार्ज होता रहता है। राह चलते, 'चंदन' ने दुकान में साड़ी देखी और उसमें तन्मयाकार हो गई। दुकान में साड़ी देखी उसमें हर्ज नहीं है, पर उसके लिए मोह उत्पन्न हुआ, उसीका हर्ज है। साड़ी को देखा और पसंद आई, वह डिस्चार्ज मोह है, पर चंदन उसमें ऐसी तन्मयाकार होती है कि जो मोह डिस्चार्ज होने लगा था, वह फिर से चार्ज हो जाता है। चंदन साड़ी में ऐसी तन्मयाकार होती है कि साड़ी सवा छ: मीटर लम्बी हो, तो चंदन भी सवा छ: मीटर की हो जाती है। साढे तीन मीटर चौडी हो. तो वह भी साढ़े तीन मीटर चौड़ी हो जाती है। साड़ी में जितने फूल हों या शीशे हों उतने चंदन को भी हो जाते हैं। प्रतिष्ठित आत्मा उसमें ही रमा हुआ रहता है। इसलिए चंदन जब वापिस घर आती है, तब फिर भी चित्त तो अच्छे से अच्छे पकौड़े या अच्छे से अच्छी मिठाई मिले और खाए उसमें हर्ज नहीं है, पर उसमें स्वाद रह जाए. तो चार्ज होता है। तन्मयाकार होकर पकौड़े और मिठाई खाए, तो पकौडे और मिठाई के जैसा हो जाता है और मोह फिर से चार्ज करता है। व्यापार करते हैं, वह डिस्चार्ज हो रहा है। पूर्व जन्म में ऐसा चार्ज किया था, इसलिए व्यापार शुरू किया और शुरू किया तब से ही डिस्चार्ज होता है, पर उसमें तदाकार होकर फिर से चार्ज करते हैं। जन्म से मृत्यु पर्यंत सभी डिस्चार्ज होता है। अभी का यह मनुष्य जन्म भी डिस्चार्ज है। पिछले जन्म में मनुष्य होना चार्ज किया था, जो अब डिस्चार्ज हो रहा है। डिस्चार्ज का तो भगवान को भी एतराज नहीं है, पर डिस्चार्ज के समय आपका ध्यान कहाँ बरतता है, उसकी कीमत है। भगवान के दर्शन को मंदिर गया, भगवान की मूर्ति के दर्शन किए और साथ-साथ बाहर रखे जूतों की भी फोटो ली (मेरे जूते सलामत हैं न!)। दर्शन किए, वह डिस्चार्ज हुआ और जूतों की फोटो खींची, वह चार्ज किया। पानी पीया वह चार्ज कहलाता है क्योंकि उसमें खुद को कर्ता मानता है। फिर पानी का पेशाब बनता है। जब वह बाहर आता है, वह डिस्चार्ज है। मनुष्य खुजलाता है, वह डिस्चार्ज है, पर खुजलाने में आनंद आता है। देह की जो स्थूल क्रियाएँ हैं, वे डिस्चार्ज स्वरूप है, उसमें आनंद लेने जैसा भी नहीं है और चिंता करने जैसा भी नहीं है। आनंद आता है, वह 'प्रतिष्ठित आत्मा' को आता है, उसको जाननेवाला खुद
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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