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________________ अंत:करण का स्वरूप अंत:करण का स्वरूप 'जजमेन्ट' है । मगर वह भी सुंदर 'जजमेन्ट' करता है। अहंकार भी शुद्ध वस्तु है। उसे जितना शुद्ध रखना हो उतना रख सकते हैं। मगर अहंकार का मूल गुण नहीं जाता। अहंकार की जो इन्टरेस्टेड (रुचिकारक) वस्तु है, उसे वह दबा देता है । वह फिर वहाँ न्याय नहीं करता। अहंकार को खुद को जिसमें इन्टरेस्ट (रुचि) होता है, उन सब वस्तुओं की भूल नहीं देखता। वहाँ तो सब भूल दबा देता है। प्रश्नकर्ता : अहंकार छोड़ने का मार्ग क्या है? दादाश्री : हम ही छुड़वाते हैं । आप क्या छोड़ेंगे? आप तो खुद ही अहंकार से बंधे हैं । इस अहंकार की कितनी लेन्थ (लंबाई) है, कितनी हाइट (ऊंचाई) है और कितनी ब्रेड्थ (चौड़ाई) है, यह आप जानते हैं? यह अहंकार सारे जगत में वाइड स्प्रेड (विस्तृत रूप से फैला हुआ) होता है ! अहंकार का लेन्थ, ब्रेड्थ, हाइट सब बड़ा है, तो अब अहंकार कैसे निकालेंगे? जैसा भगवान का विराट स्वरूप है ऐसा अहंकार का स्वरूप है । आपको अहंकार निकालना है? तो हम निकाल देंगे। हमारे पास आ जाना। अहंकार चला जायेगा तो फिर अहंकार के लड़के है न, क्रोधमान-माया-लोभ, वे सब अपना बिस्तरा बाँधकर चले जायेंगे । फिर देह में जो थोड़ा रहता है, वह निर्जीव अहंकार रहता है, निर्जीव क्रोधमान-माया-लोभ रहते हैं, सजीव नहीं रहता। फिर क्रोध आपको नहीं होगा, शरीर को होगा। मगर निर्जीव हो जायेगा। निर्जीव यानी ड्रामेटिक, नाटक की माफिक रहता है। जैसे नाटक में बोलते हैं न, 'हम राजा है' मगर अंदर जानता है कि, 'मैं ब्राह्मण हूँ और अभी इधर नाटक में राजा हूँ।' निअहंकारी का संसार कौन चलाएगा? हमारा अहंकार बिल्कुल खत्म हो गया है। साइन्टिस्ट लोग पूछते हैं कि 'आपका अहंकार खत्म हो गया तो फिर आप काम कैसे कर सकते हैं?' हमने बताया, 'वो हमारा निर्जीव अहंकार है।' जैसे यह लटू (Top) होता है न? उसे ऐसे फेंकते हैं, फिर वह घूमता है। वह कैसे घूमता है? वह निर्जीव है, ऐसे हमारा अहंकार भी निर्जीव अहंकार है। आपको सजीव अहंकार भी है और निर्जीव अहंकार भी है। निर्जीव अहंकार से कर्मफल मिलता है और सजीव अहंकार से अगले जन्म के लिए कर्मबंध होता है। सजीव अहंकार से अगले जन्म की मन-वचन-काया की नई बैटरी चार्ज हो जाती है और निर्जीव अहंकार से मन-वचन-काया की पुरानी बैटरी डिस्चार्ज होती है। ऐसे आपको चार्ज और डिस्चार्ज दोनों हो रहे हैं। हम आपका चार्ज बंद कर देंगे, फिर डिस्चार्ज अकेला रहेगा। सिर्फ संसार चलाने के लिए जो अहंकार चाहिए, उतना डिस्चार्ज रूप अहंकार रहता है। वह चार्ज रूप अहंकार नहीं होता है। आत्मा मिल जाये फिर, गाली दे, कुछ भी करे, तो उसे स्पर्श होता ही नहीं। आत्मा मिल जाने के बाद अहंकार चला जाता है। आत्मा मिलने के बाद जो अहंकार है, वह संसार का काम करे ऐसा रहेगा, निर्जीव अहंकार, फिर सजीव अहंकार नहीं रहेगा। अहंकार की मुक्ति करनी है। अहंकार की मुक्ति हुई कि (संपूर्ण) मुक्ति हो गई। ज्ञानियों की भाषा में जीता-मरता कौन है? प्रश्नकर्ता : आत्मा अमर है, इसका अर्थ क्या है? दादाश्री : अमर यानी सनातन है। जो चीज़ रिअल है, वह सनातन है। सनातन ही अमर है। सनातन यानी शाश्वत, पर्मनेन्ट! आत्मा है, वह पर्मनेन्ट है। आप इन पाँच इन्द्रियों से अनुभव करते हैं, वे सब रिलेटिव है। वे अवस्थाएँ है और अवस्था टेम्पररी एडजस्टमेन्ट है, विनाशी है। प्रश्नकर्ता : यह मरता कौन है?
SR No.009574
Book TitleAntakaran Ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size219 KB
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