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________________ अंत:करण का स्वरूप ११ अंत:करण का स्वरूप हैं, जो रिअल है वह खुद भगवान है और रिलेटिव है, उसे हम निर्दोष देखते हैं। फिर अभिप्राय कैसे रहेगा? अभिप्रायवाले को दोषी ही दिखेगा। सच बात क्या है कि जगत निर्दोष ही है। आँख से देखते हैं वह सब बात सच नहीं है। ये सब भ्रांति है। वास्तव में इस दुनिया में कोई दोषी है ही नहीं। मगर आप दोषी देखते हैं, वो आपको खुद को ही नुकसान करता है। हमें कोई गाली दे तो हमें वह दोषी नहीं दिखता है। प्रश्नकर्ता : ऐसी दृष्टि खुल जाये, तो फिर दुनिया में कोई बंधन ही नहीं रहता! दादाश्री : अरे, फिर तो मन भी नहीं रहता। भाषा हमेशा अभिप्राय के साथ होती है। जब अभिप्राय बोलेगा, तब भाषा बोलनी ही पड़ती है। अभिप्राय बंद हो जाये तो मन खत्म हो जाये, ऐसा आपको समझ में आता है? एक जैन का लडका है, उसे आप पढेंगे कि तझे मांसाहार का विचार आता है? तो वह बोलेगा कभी आया ही नहीं। और कोई मुसलमान को पूछेगे तो वह बोलेगा, 'हमें हर रोज खाने में वही रहता है।' उस जैन ने पिछले जन्म में मांसाहार का अभिप्राय नहीं रखा, इसलिए उसे मन हुआ नहीं। मुसलमान ने मांसाहार का अभिप्राय रखा तो उसे मन हो गया। इस जन्म में वह अभिप्राय निकाल दे. तो अगले जन्म में मन साफ हो जाता है। तुम्हारा अभिप्राय है कि इसको मारना ही चाहिए, तो मन अगले जन्म में क्या कहेगा? 'मारो साले को,' ऐसा बोलेगा। जो अभिप्राय था, उसका नया मन हो गया। सब बोलेंगे कि मारो, मारो। फिर आप बोलेंगे कि हमारा मन हमारे वश क्यों नहीं रहता । अरे, कैसे वश होगा? खुदके आधार से तो मन हो गया है। हमारी बात आपकी समझ में आती है? प्रश्नकर्ता : अभी जो अभिप्राय दिया है, उसका परिणाम अगले जन्म में आएगा, मगर पहले जो अभिप्राय दिया है उसका क्या? दादाश्री : उसके ही फलस्वरूप यह मन है। यह मन है इससे आपको टेली हो जायेगा (मेल बैठ जायेगा) कि पिछले जन्म में क्या अभिप्राय दिये थे। विचार आया तो लिख लो कि ऐसा अभिप्राय दिया है। फिर वो सब अभिप्राय को तोड़ दो तो यह मन खत्म हो जाता है। हमारा मन खत्म हो गया है। प्रश्नकर्ता : तो फिर मन किसमें विलीन होगा? क्योंकि मन होगा तो जगत होगा। दादाश्री : मन ऐसे ही डिजॉल्व (विलीन) हो जाता है, मगर उसे फिर से न बनायें तो। मन तो निरंतर डिस्चार्ज ही हो रहा है, मगर आप फिर से चार्ज भी करते हैं। तो हम क्या करते हैं? चार्ज बंद कर देते हैं। फिर डिस्चार्ज होने दीजिये। अभी तो आपका मन चार्ज भी होता है और डिस्चार्ज भी होता है। प्रश्नकर्ता : तो जन्म-मरण का चक्कर बंद कैसे होगा? दादाश्री : मन पूरा डिस्चार्ज हो गया और नया चार्ज नहीं किया तो (जन्म-मरण का) चक्कर बंद हो गया। चित्त का स्वरूप मन थोड़ा समझ में आ गया न? अब यह चित्त क्या है? वह कैसे बना है? प्रश्नकर्ता : वह मन का ही विभाग है। एक बात पर ठीक से विचार करता है, चिंतन करता है, वही चित्त है। दादाश्री : नहीं, नहीं.... चित्त और मन को कुछ लेना-देना नहीं है। आपकी बात उस ओर की है। मगर चित्त कौन-सी चीज़ का कॉम्पोजिशन (संयोजन) है? ज्ञान-दर्शन चित्त का कॉम्पोजिशन है। ज्ञान और दर्शन दोनों अलग हैं। दोनो मिक्सचर (मिलाव) हो जायें, तब उसे चित्त बोला जाता है। ज्ञान और दर्शन में क्या फर्क है? आप आँख से दर्शन को दर्शन मानते हैं? वह दर्शन नहीं है। दर्शन किसे बोलते
SR No.009574
Book TitleAntakaran Ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size219 KB
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