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________________ अहिंसा ८९ तो सारा वर्ल्ड पूजा करता। परन्तु वह वाक्य उनकी समझ में पहुँचता ही नहीं न! और कोई पहुँचानेवाला भी नहीं है। प्रश्नकर्ता : आप हो न? दादाश्री : मेरे अकेले की पुंगी कहाँ बजे? ज्ञानी पुरुष की अहिंसा का प्रताप ज्ञानी पुरुष का व्यवहार तो कैसा होता है? इतना अधिक अहिंसक होता है कि बड़े-बड़े बाघ भी शरमा जाएँ। बड़े-बड़े बाघ बैठे हों, तब भी ठंडे पड़ जाए, उसे सर्दी लग जाए, वास्तव में सर्दी लग जाए न ! क्योंकि वह अहिंसा का प्रताप है। हिंसा का प्रताप तो जगत् ने देखा है न! ये हिटलर, चर्चिल सभी के प्रताप देखे हैं न? अंत में क्या हुआ? विनाश को न्योता दिया। हिंसा, वह विनाशी तत्त्व है। और अहिंसा, वह अविनाशी तत्त्व है। अहिंसा, वहाँ हिंसा नहीं प्रश्नकर्ता : अहिंसा हो, वहाँ हिंसा होती है? दादाश्री : अहिंसा संपूर्ण हो वहाँ हिंसा नहीं होती। वह फिर आंशिक अहिंसा कहलाती है। परन्तु जो संपूर्ण अहिंसा होती है, उसमें हिंसा होती नहीं। पपीता की जितनी-जितनी स्लाइसेस करें, वे सब पपीता जैसी ही होती हैं, उसमें एक भी कड़वी नहीं निकलती। इसलिए स्लाइस एक ही प्रकार की होती है, मतलब अहिंसा में हिंसा नहीं होती। और संपूर्ण हिंसा हो उसमें अहिंसा भी नहीं होती। परन्तु आंशिक हिंसा, आंशिक अहिंसा, वह अलग चीज़ है। प्रश्नकर्ता : आंशिक अहिंसा, वह दया कहलाती है न? दादाश्री : हाँ, वह दया कहलाती है। वह दया कहलाती है। दया धर्म का मूल ही है और दया की पूर्णाहुति, वहाँ धर्म की पूर्णाहुति होती है। हिंसा-अहिंसा से पर प्रश्नकर्ता : दया हो वहाँ निर्दयता होती ही है। ऐसा हिंसा और अहिंसा अहिंसा के बारे में भी है? दादाश्री : हाँ है न! अहिंसा है तो हिंसा है। हिंसा है तो अहिंसा खड़ी रही है। अंत में भी क्या करना है? हिंसा में से बाहर निकलकर अहिंसा में आना है और अहिंसा से भी बाहर निकलना है। इस द्वंद्व से पर जाना है। अहिंसा, वह भी छोड़ देनी है। प्रश्नकर्ता : अहिंसा से पर, वह कौनसी स्थिति? दादाश्री : वही, अभी 'हम' हिंसा-अहिंसा से पर ही हैं। अहिंसा अहंकार के आधीन है और अहंकार से पर ऐसी यह 'हमारी' स्थिति ! हिंसा-अहिंसा मैं पालता हूँ उसका पालनेवाला अहंकार होता है। इसलिए हिंसा और अहिंसा से पर यानी द्वंद्वी से पर हो तब ही वह ज्ञानी कहलाते हैं। तमाम प्रकार के द्वंद्वो से पर। इसलिए अपने साधु-महाराज, वे बहुत दयालु होते हैं। परन्तु निर्दयता भी अंदर भरी हुई होती है। दया है, इसलिए निर्दयता है। एक कोने में भले खूब दया है। अस्सी प्रतिशत दया है तो बीस प्रतिशत निर्दयता है। इठ्यासी प्रतिशत दया है तो बारह प्रतिशत निर्दयता। छियानवे प्रतिशत दया है तो चार प्रतिशत निर्दयता है। प्रश्नकर्ता : ऐसा हिंसा में भी होता है। छियानवे प्रतिशत अहिंसा हो तो चार प्रतिशत हिंसा है, ऐसा। दादाश्री : कुल जोड़ ही दिखता है न! इटसेल्फ ही बोलता है न! कि अहिंसा छियानवे है इसलिए रहा क्या फिर? चार हिंसा रही। प्रश्नकर्ता : तो वह हिंसा किस प्रकार की होती है? दादाश्री : वह अंतिम प्रकार की। खुद जानता है और निकाल कर देता है। झटपट वह निकाल करके छूट जाता है। ज्ञानी, हिंसा के सागर में संपूर्ण अहिंसक अरे, हमें ही लोग पूछते हैं कि आप ज्ञानी होकर और मोटरों में घूमते हैं, तो मोटर के नीचे कितनी ही जीवहिंसा होती होगी, उसकी
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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