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________________ अहिंसा अहिंसा वापिस ताला लगा देना। घर जाकर ऐसा कहना कि आज सारे दिन में निश्चय करके निकला, फिर भी जो कोई किसी को दुख हुआ हो, उसकी क्षमायाचना कर लेता हूँ। बस हो गया। फिर आपकी जोखिमदारी ही नहीं न! ने उसे रौद्रध्यान कहा है, और उसका फल जबरदस्त नर्क कहा है। ऐसे बुद्धि का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। बुद्धि तो लाइट है। वो लाइट मतलब अँधेरे में जा रहे हों, उन्हें लाइट दिखाने के भी पैसे माँगते हो आप? अंधेरे में किसी व्यक्ति के पास फ़ानूस छोटा-सा हो, तो हमें लाइट नहीं दिखानी चाहिए उस बेचारे को? बुद्धि से लोगों ने दुरुपयोग किया, वह हार्ड रौद्रध्यान, नर्क में जाने से भी छूटा नहीं जाएगा। हार्ड रौद्रध्यान किसी काल में हुआ नहीं, वैसा इस पाँचवे आरे में चला है। बुद्धि से मारते हैं क्या? आप जानते हो? ऐसे बुद्धि से मारते हैं न, वह भयंकर गुनाह है। देखो, यह अभी भी छोड़ देंगे न और अभी तक का पछतावा लें और अब नये सिरे से नहीं करे, तो अभी भी अच्छा है। नहीं तो इसका कोई ठिकाना नहीं। वह गैरजिम्मेदारी है। इतना करो, और अहिंसक बनो हमें मन में हिंसकभाव नहीं रखना है। मुझे किसी की हिंसा करनी नहीं' ऐसा भाव ही मज़बूत रखना और सुबह पहले बोलना चाहिए कि, 'मन-वचन-काया से किसी जीव को किंचित् मात्र दुख न हो।' ऐसा भाव बोलकर और फिर संसारी क्रिया शुरू करना, ताकि जिम्मेदारी कम हो जाए। फिर अपने पैर से कोई जीव कुचला गया, तब भी आप जिम्मेदार नहीं हैं। क्योंकि आज आपका भाव नहीं है वैसा। आपकी क्रिया भगवान देखते नहीं हैं, आपके भाव देखते हैं। कुदरत के बहीखाते में तो आपका भाव देखते हैं और यहाँ कि सरकार, यहाँ के लोगों के बहीखाते में आपकी क्रिया देखती है। लोगों का बहीखाता तो यहीं का यहीं पड़ा रहनेवाला है। कुदरत का खाता वहाँ काम लगेगा। इसलिए आपका भाव कहाँ है, उसकी जाँच करो। इसलिए सुबह पहले ऐसा पाँच बार बोलकर निकला वह अहिंसक ही है। चाहे जहाँ फिर रक-झक कर आया हो, तब भी वह अहिंसक है। क्योंकि घर से निकला तब निश्चय करके निकला था और फिर घर जाकर किसी जीव की हिंसा करनी नहीं, करवानी नहीं या कर्ता के प्रति अनुमोदना नहीं करनी और मेरे मन-वचन-काया से किसी जीव को दुख न हो, ऐसी भावना रही कि आप अहिंसक हो गए! वह अहिंसा महाव्रत पूरा हो गया कहलाता है। मन में भावना निश्चित करी, निश्चित यानी डिसीज़न। यानी हम जो निश्चिच करते हैं और उसे कम्पलीट सिन्सियर रहें, उसी बात पर ही कायम रहें, तो महाव्रत कहलाता है और निश्चिच किया परन्तु कायम न रहें तो अणुव्रत कहलाता है। सावधान हो जाओ, है विषय में हिंसा भगवान यदि कभी विषय की हिंसा का वर्णन करे तो मनुष्य मर जाए। लोग समझते हैं कि इसमें क्या हिंसा है? हम किसी को डाँटते नहीं है। परन्तु भगवान की दृष्टि से देखें तो हिंसा और आसक्ति दोनों इकट्ठे होते हैं, इसलिए पाँचों महाव्रत टूटते हैं और उससे बहुत दोष लगता है। एक ही बार के विषय से लाखों जीव मर जाते हैं, उसका दोष लगता है। इसलिए इच्छा न हो फिर भी उसमें भयंकर हिंसा है। इसलिए रौद्र स्वरूप हो जाता है। एक विषय के कारण तो सारा संसार खड़ा रहा है। यह स्त्री विषय न हो न, तो दूसरे सब विषय तो कभी बाधक ही नहीं होते। अकेले इस विषय का अभाव हो जाए, तब भी देवगति हो। इस विषय का अभाव हुआ कि दूसरे सब विषय, सभी काबू में आ जाते हैं। और इस विषय में पड़ा कि विषय से पहले जानवरगति में जाता है। विषय से बस अधोगति ही है। क्योंकि एक विषय में तो कई करोड़ों जीव मर जाते हैं। समझ न हो फिर भी जोखिम मोल लेते हैं न! इसलिए जब तक संसारीपन है, स्त्री विषय है, तब तक वह अहिंसा
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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