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________________ अहिंसा 'साहब, मैं पालक बनूँ?' तब लोगों ने कहा, 'अरे, इस जैन सेठ का बेटा और तू निचले वर्ण का।' पर दूसरे लोग बोले, 'वह नहीं लेगा तो कहाँ रखोगे? मर जाए उससे तो कम से कम जीएगा तो सही। तो वह क्या बुरा है?' इस तरह दोनों बड़े हुए। पहला सुनार के वहाँ बड़ा हुआ और बीस-बाइस वर्ष का हुआ तब कहता है, 'दारू पीना गुनाह है, माँसाहार करना, वह गुनाह है।' जब कि दूसरा अठारह-बीस वर्ष का हुआ तब कहता है, 'दारू पीना चाहिए, दारू बनाना चाहिए. माँसाहार करना चाहिए।' अब ये दो भाई एक भिंडी के दो दाने, क्यों ऐसे अलग-अलग बोले? प्रश्नकर्ता : संस्कार। अहिंसा जन्मा ही नहीं। ये तो फालतू का इगोइज़म करते हैं। यह कसाई कहता है कि, 'अच्छे-अच्छे जीव काटे हैं।' वह उसका इगोइज़म करता है, तब रियल क्या कहता है?! इस मारनेवाले का मोक्ष होगा या बचानेवाले का मोक्ष होगा? दोनों का ही मोक्ष नहीं है। दोनों इगोइज़मवाले हैं। यह बचाने का इगोइज़म करता है और वह मारने का इगोइज़म करता है। रियल में नहीं चलेगा, रिलेटिव में चलेगा। वे दोनों अहंकारी हैं भगवान कोई कच्ची माया नहीं है। भगवान के वहाँ तो मोक्ष में जाने के लिए कानून कैसा है? एक शराब पीने का अहंकार करता है और एक शराब नहीं पीने का अहंकार करता है। उन दोनों को भगवान मोक्ष में प्रवेश नहीं करने देते। वहाँ कैफ़ी को प्रवेश नहीं करने देते। वहाँ निष्कैफ़ी को आने देते हैं। इसलिए जो लोग दारू नहीं पीते और उसकी मन में झूठी घेमराजी (खुद की बहुत सीमित क्षमता हो परंतु सबकुछ कर सके ऐसा घमंड) रखते हैं, वह तो भयंकर गुनाह है। वह तो दारू पीनेवाले से भी गयाबीता है। दारू पीता हो वह तो बेचारा ऐसे ही कहता है कि, 'साहब, मैं तो सबसे मूर्ख इन्सान हूँ, गधा हूँ, नालायक हूँ।' और दो मटके पानी डालें न, तब भी उसका कैफ़ उतर जाए। पर इन लोगों को मोह का जो दारू चढ़ा हुआ है, वह अनादि जन्मों से उतरता ही नहीं, और 'मैं कुछ हूँ, मैं कुछ हूँ' करते रहते हैं। उसका आपको एक उदाहरण समझाऊँ। एक छोटे गाँव में एक जैन सेठ रहते थे। स्थिति साधारण थी। उनका एक बेटा तीन वर्ष का और एक डेढ़ वर्ष का। अचानक प्लेग फैला और माँ-बाप दोनों मर गए। दोनों बच्चे रह गए। फिर गाँववालों को पता चला, वे सब इकट्ठे हुए कि अब इन बच्चों का क्या करें? हम उसका रास्ता निकाले। कोई बच्चों का पालक निकले तो अच्छा। एक सुनार था, उसने बड़े लड़के को लिया। और दूसरे को कोई लेनेवाला ही नहीं था, इसलिए एक निचले वर्णवाला कहता है, दादाश्री : हाँ, संस्कार, अलग-अलग पानी का सिंचन हुआ ! इसलिए फिर किसी ने कहा कि, 'यह तो जैन कहलाए ही नहीं न!' एक संत होंगे. उनसे पछा कि 'साहब, ये दो भाई थे और ऐसा अलग-अलग कहते हैं। इनमें से मोक्ष किसका होगा?' तब संत कहते हैं, 'इसमें मोक्ष की बात करने की रही ही कहाँ? वह दारू नहीं पीने का अहंकार करता है. माँसाहार नहीं करने का अहंकार करता है। और यह दारू पीने का अहंकार करता है, माँसाहार करने का अहंकार करता है। इसमें मोक्ष की बात ही कहाँ रही? मोक्ष की बात तो अलग ही है। वहाँ तो निरअहंकारी भाव चाहिए।' ये तो दोनों अहंकारी हैं। एक इस खड्डे में पड़ा है, दूसरा दूसरे खड्डे में पड़ा है। भगवान दोनों को अहंकारी कहते हैं। सिर्फ अहिंसा के पुजारियों के लिए ही लोग जो मानते हैं वैसा भगवान ने नहीं कहा है, भगवान बहुत समझदार पुरुष! भगवान ने ऐसा कहा है कि इस वर्ल्ड में कोई ऐसा है नहीं कि जो किसी को मार सके। क्योंकि साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। किस तरह मार सकता है? सारे कितने ही संयोग इकट्ठे हों तब वह मर जाता है! और फिर साथ-साथ ऐसा भी कहा है कि यह बिलकुल गुप्त रखने जैसी बात है। तब कोई कहेगा, 'साहब, ऐसा भी बोलते हैं और ऐसा भी बोलते हैं?' तब भगवान कहते हैं. 'देखो. यह बात
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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