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________________ अहिंसा ही रहती है। मुँह खोलकर बड़ी मछलियाँ बैठी रहती हैं। तब छोटी मछलियाँ उसके पेट के अंदर ही घुस जाती हैं। है कोई परेशानी? फिर मुँह बंध कर दे तो सब खतम! पर आप उसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। यानी वह तो दुनिया का कानून ही है। हम मना करें, और वे सारे बकरों को खा जाएँ। बड़े जीव छोटे जीव को खाते हैं, छोटा उससे छोटे को खाता रहता है, उससे छोटा उससे छोटे को खाता रहता है। ऐसे करते-करते पूरे समुद्र का सारा जगत् चल रहा है। जब तक मनुष्य जन्म का विवेक नहीं आता तब तक सारी छूट है। अब वहाँ पर कोई बचाने जाता नहीं और हम यहाँ पर लोगों को बचाने जाते हैं। संपूर्ण अहिंसक को नहीं कोई आँच प्रश्नकर्ता : परन्तु ये गोलियाँ चलाते हैं अहिंसक लोगों पर। अहिंसा उतना उसका दूध नोर्मल चाहिए, उससे कई अधिक होता है। इस प्रकार से लेना चाहिए और बच्चे को भूखा मारना नहीं। चक्रवर्ती राजा तो हज़ार-हज़ार, दो-दो हज़ार गाय रखते थे। उसे गोशाला कहते थे। चक्रवर्ती राजा दूध कैसा पीते होंगे? कि हज़ार गायें हों गोशाला में उन हज़ार गायों का दूध निकालते, वह सौ गायों को पिला देते। उन सौ गायों का दूध निकालकर दस गायों को पिला देते। उन दस गायों का दूध निकालना और वह एक गाय को पिला देते उसका दूध चक्रवर्ती राजा पीते थे। हिंसक प्राणी की हिंसा में हिंसा? प्रश्नकर्ता : किसी भी प्राणी को मारना वह हिंसा है। परन्तु हिंसक प्राणी कि जो दूसरे प्राणी या मनुष्य पर हिंसा कर सकता है अथवा जानहानि कर सकता है, तो उसकी हिंसा करनी चाहिए या नहीं? दादाश्री : किसी की हिंसा करनी नहीं है ऐसा भाव रखना। और आप साँप को नहीं मारो तो दूसरा कोई मारनेवाला मिल आएगा। इसलिए आपमें साँप मारने की शक्ति नहीं हो, तो यहाँ तो मारनेवाले सब बहुत हैं, अपार हैं और मारनेवाली अन्य जातियाँ भी बहुत ही हैं। इसलिए आप अपने आप आपका स्वभाव बिगाड़ना नहीं। इसलिए हिंसा करने में फायदा नहीं है। हिंसा खुद को ही नुकसान करती है। जीवो जीवस्य भोजनम् प्रश्नकर्ता : मनुष्य बुद्धिजीवी प्राणी है तो उसे पशुहिंसा नहीं करनी चाहिए। परन्तु एक प्राणी दूसरे प्राणी को खाकर जी सकता हो तो उस मनुष्य और प्राणी के बीच के बुद्धि के फर्क के कारण ऐसा भेदभाव है? प्राणी और प्राणी के बीच की हिंसा का क्या? दादाश्री: प्राणी और प्राणी के बीच की हिंसा में यू आर नोट रिस्पोन्सिबल एट ओल। क्योंकि इस समुद्र के अंदर कोई खेत नहीं होते या कंट्रोल के अनाज की दुकानें नहीं होती। इसलिए वहाँ तो हिंसा चलती दादाश्री: अहिंसक लोगों पर गोलियाँ चलती भी नहीं। ऐसा किसी को करना हो तब भी होता नहीं। अहिंसक जो हैं न. उन्हें सौ तरफ से गोलियाँ लेकर घेर लें न, तब भी उसे गोली छुए नहीं। यह तो हिंसकों को ही गोलियाँ छूती हैं। उसका स्वभाव है, हर एक वस्तु का। अभी केवल अहिंसा करने में आए न तो इस संसार में लूट लें। एक क्षण भी यदि छूट दी जाए न तो, यहाँ बैठने भी न दे। क्योंकि एक तो कलियुग है, लोगों के मन बिगड़े हुए हैं। तरह-तरह के व्यसनी हो गए हैं। इसलिए क्या नहीं करेंगे वहाँ? यानी ये गोलियाँ एक तरफ हों तो एक तरफ अहिंसा रह सकती है, नहीं तो अहिंसा का मुश्किल से पालन करवाना पड़ता है। यद्यपि अब यह काल बदल रहा है इसे! अब काल बदल रहा है यह सब, और बहुत अच्छा काल देखोगे आप। आप अपने आप खुद देखोगे सारा। प्रश्नकर्ता : एक संत अहिंसा पालते थे तब भी उनका खून क्यों हुआ? क्योंकि अभी आपने कहा कि अहिंसा पर गोली नहीं लगती।
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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