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________________ अहिंसा ५४ अहिंसा दूसरे कोई काट खाते हैं। कुदरत के घर तैयार सामान होता है, सब जगह बोम्बार्डिंग करने के लिए। आपने जो कर्म बांधे हैं, वे कर्म चुकाने के लिए उसके पास सभी साधन तैयार हैं। इसलिए यदि आपको इस जगत् में इन दुखों में से मुक्त होना हो तो कोई आपको दुख दे पर आपको सामने दुख नहीं देना चाहिए। नहीं तो थोड़ा भी दुख दोगे तो अगले जन्म में वह साँपिन होकर काटेगी, सारे हज़ारों तरह से बैर बसूले बिना रहेगी नहीं। इस दुनिया में थोड़ा भी बैर बढ़ाने जैसा नहीं है। फिर यह दुःख आते हैं, वह सब उपाधि करी किसी को दुख दिए उसके ही दुख आते हैं न! नहीं तो दुख होता ही नहीं दुनिया में। में जाए या फिर अहिंसक व्यक्ति हिंसक की योनि में जाए? दादाश्री : हाँ, खुशी से जाते हैं। यहाँ अहिंसक हो और दूसरे भव में हिंसक हो जाए। क्योंकि उसे वहाँ उसके माँ-बाप हिंसक मिले। इसलिए फिर आसपास के संयोग मिले, उससे वैसा हो गया। प्रश्नकर्ता : उसका कारण क्या है? दादाश्री : ऐसा है, अहिंसक होता है न, वह जानवर में जाए तो गाय में जाता है, भैंस में जाता है। हिंसावाला यहाँ से बाघ में जाता है, कुत्ते में जाता है, बिल्ली में जाता है, जहाँ हिंसक जानवर हों वहाँ जाता है। परन्तु मनुष्य में अहिंसक हो न तब भी हिंसक के वहाँ जन्म लेता है। फिर उसके वापिस हिंसक के संस्कार पड़ते हैं। वह भी ऋणानबंध हैं न! हिसाब है न! राग-द्वेष होते हैं, वही ऋणानुबंध। जिसके साथ राग हुआ तब फिर चिपका। उस पर द्वेष करें तब भी चिपकता है। द्वेष करें कि यह नालायक है, बदमाश है, ऐसा है, वैसा है, तो वहाँ ही जन्म होता है। न छुए कुछ अहिंसक को प्रश्नकर्ता : यह कुत्ता काटे उसमें कौन-सा ऋणानुबंध होगा? दादाश्री : ऋणानुबंध के बिना तो एक राई का दाना आपके मुँह में नहीं जाता, बाहर ही गिर जाता है। प्रश्नकर्ता : यदि कुत्ता हमें काटता है तो हमने क्या उसके साथ कर्म बांधा हुआ होगा? दादाश्री : ना, वैसा उसके साथ कर्म बाँधा नहीं होता है। पर यह तो हमारे वहाँ मनुष्य होकर भी काटते नहीं है? ऐसा भी लोग बोलते हैं न, कि मुआ ये मुझे काटने दौड़ता है! एक व्यक्ति तो मुझे कहता है कि मेरी पत्नी तो साँपिन ही देख लो। रात को काटती है। अब वह असल में काटती नहीं है। परन्तु ऐसा कुछ बोलते हैं, कि वह हमें काटने जैसा लगता है। अब ऐसा बोला न, उसके फलस्वरूप ये कुत्ते काट खाते हैं, प्रश्नकर्ता : यानी, यह जीवन तो एक शाश्वत संघर्ष ही है। दादाश्री : हाँ, पर यदि आप अहिंसक वातावरण रखोगे तो साँप भी आपको काटेगा नहीं। सामनेवाला आप पर साँप भी डाले तब भी वह काटेगा नहीं, भाग जाएगा बेचारा। बाघ भी आपकी तरफ नहीं देखेगा। इस अहिंसा का इतना अधिक बल है कि बात न पूछो! अहिंसा जैसा कोई बल नहीं और अहिंसा जैसी निर्बलता नहीं। यह तो सब हिंसा के कारण दुख हैं, निरी हिंसा से ही दुख है। बाकी, इस दुनिया में कोई चीज़ आपको काट सके ऐसा है ही नहीं। और जो काट सकते हैं, वही आपका हिसाब है। इसलिए हिसाब चुकता कर देना। और काट गया फिर आप मन में जो भाव करते हो कि 'इस कुत्ते को तो मार ही डालना चाहिए. ऐसा करना चाहिए, वैसा करना चाहिए।' तब वह फिर नया हिसाब शुरू किया। चाहे जैसी परिस्थिति में समता रखकर हल लाओ, अंदर थोड़ा भी विषम नहीं हो! प्रश्नकर्ता : परन्तु उस अवस्था में तो जागृति-समता रहती नहीं है। दादाश्री : यह संसार पार करना बहुत मुश्किल है, इसलिए यह अक्रम विज्ञान देते हैं।
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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