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________________ अहिंसा को क्रोधी बनाते हैं और क्रोध हो, तब सामनेवाले को दुख होता है। दूसरी आपको जो सब्जी खानी हो वह खाना। पहले बड़े जीव बचाओ अब भगवान क्या कहना चाहते हैं कि पहले मनुष्यों को सँभालो। हाँ, वह बाउन्ड्री सीखो कि मनुष्यों को तो मन-वचन-काया से किंचित् मात्र दुख नहीं देना है। फिर पंचेन्द्रिय जीव- गाय, भेंस, मुर्गी, बकरे, ये सब जो हैं, उनकी मनुष्यों से थोड़ी-बहुत कम, परन्तु उनकी सँभाल रखनी चाहिए। उन्हें दुख नहीं हो ऐसा ध्यान रखना चाहिए। मतलब यहाँ तक ध्यान रखना है। मनुष्य के अलावा के पंचेन्द्रिय जीवों को, लेकिन वह सेकन्डरी स्टेज में। फिर तीसरी स्टेज कौन-सी आती है? दो इन्द्रिय से ऊपर के जीवों का ध्यान रखना। आहार में सबसे ऊँचा आहार कौन-सा? एकेन्द्रिय जीवों का! दो इन्द्रिय के ऊपर के जीवों के आहार का, जिसे मोक्ष में जाना हो उसे अधिकार नहीं है। इसलिए दो इन्द्रिय से अधिक इन्द्रियवाले जीवों की जोखिम हमें नहीं उठानी चाहिए। क्योंकि जितनी उनकी इन्द्रियाँ उतने प्रमाण में पुण्य की ज़रूरत है, उतना मनुष्य का पुण्य खर्च हो जाता है! मनुष्य को खुराक खाए बिना छुटकारा ही नहीं और उस जीव का नुकसान तो मनुष्य को अवश्य जाता है। अपना जो भोजन है वह एकेन्द्रिय जीव ही है। उनका भोजन हम करें तो वे भोज्य और हम भोक्ता हैं और तब तक जिम्मेदारी आती है। पर भगवान ने यह छूट दी है। क्योंकि आप महान सिलक (पूंजी, राहखर्च)वाले हो और आप उन जीवों का नाश करते हो। पर उन जीवों को खाते हैं, उसमें उन जीवों को क्या फायदा? और उन जीवों को खाने से नाश तो होता ही है। परन्तु ऐसा है, यह भोजन खाया इसलिए आपको दंड लागू होता है। पर वह खाकर भी आप नफा अधिक कमाते हो। सारे दिन जीए और धर्म किया तो आप सौ कमाते हो। उसमें से दस का जुर्माना आपको उन्हें चुकाना पड़ता है। इसलिए नब्बे आपके पास रहे हैं और आपकी कमाई में से दस उन्हें मिलने से उनकी अहिंसा ऊर्ध्वगति होती है। यानी यह तो कुदरत के नियम के आधार पर ही ऊर्ध्वगति हो रही है। वे एकेन्द्रिय में से दो इन्द्रिय में आ रहे हैं। यानी इस प्रकार यह क्रमपूर्वक बढ़ता ही जा रहा है। इन मनुष्यों के लाभ में से वे जीव लाभ उठाते हैं। इस तरह हिसाब सारा चुकता होता रहता है। यह सब साइन्स लोगों को समझ में नहीं आता न! इसलिए एकेन्द्रिय में हाथ मत डालना। एकेन्द्रिय जीवों में आप हाथ डालोगे तो आप इगोइज़मवाले हो, अहंकारी हो। एकेन्द्रिय त्रस जीव नहीं है। इसलिए एकेन्द्रिय के लिए आप कोई विकल्प करना नहीं। क्योंकि यह तो व्यवहार ही है। खाना-पीना पड़ेगा, सब करना पड़ेगा। बाकी, जगत् सारा जीवजंतु ही है। एकेन्द्रिय जीव का तो सभी यह जीवन ही है। जीव बिना तो इस दुनिया में कोई वस्तु ही नहीं। और निर्जीव वस्तु खाई जा सके ऐसी नहीं है। इसलिए जीववाली वस्तु ही खानी पड़ती है। उससे ही शरीर को पोषण मिलता है। और एकेन्द्रिय जीव हैं इसलिए खून, पीब, माँस नहीं है इसलिए एकेन्द्रिय जीव आपको खाने की छूट दी है। इसमें तो इतनी सारी चिंताएँ करने जाओ, तो कब पार आए? उस जीव की चिंता करनी ही नहीं है। चिंता करनी थी वह रह गए और नहीं करने की चिंता पकड़ रखी है। ऐसी झीनी हिंसा की तो चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं। कौन-सा आहार उत्तम? प्रश्नकर्ता : क्रमिक मार्ग में कुछ खास खुराक खाना क्यों निषेद्य दादाश्री : ऐसा है, खुराक के प्रकार हैं। उसमें मनुष्य को अत्यंत अहितकारी खुराक, कि जिससे अधिक दूसरा कुछ अहितकारी नहीं होता ऐसा अंतिम प्रकार का अहितकारी, वह मनुष्य का माँस खाना, वह है। अब उससे अच्छा क्या? जिस जानवर की औलाद बढ़ती हो, उस जानवर का माँस खाना वह अच्छा। इसलिए इन मुर्गी-बतक, उनकी औलाद बहुत बढ़ती हैं। इन गायों-भैंसों की औलाद कम बढ़ती हैं। इन मछलियों की
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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