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________________ अहिंसा के बाद कहलाएगा। हिसाब कहें तो सब बिगड जाएगा। हमारे गाँव में साधबाबा आते हों और बच्चों को उठाकर ले जाते हों तब हम कहते हैं न कि पकड़ो इन लोगों को और रोक दो! इसलिए जैसे खुद के बच्चे को कोई ले जाए, उठा जाए तो कितना दुख होगा? उसी तरह ये गायें-भैंसें वे सब कटते हैं, उनके लिए मन में बहुत ही दुख रहना चाहिए, और उनके सामने विरोध होना चाहिए। नहीं तो वह काम सफल ही नहीं होगा न! बैठे रहने की ज़रूरत ही नहीं। उसे कर्म का उदय मानें, पर भगवान भी ऐसा नहीं मानते थे। भगवान भी विरोध प्रदर्शित करते थे। इसलिए हमें विरोध प्रदर्शित करना चाहिए, एकता सर्जित करनी चाहिए और उसका सामना करना चाहिए। इसमें तो कोई हिंसा के विरोधी नहीं हैं, पर अहिंसक भाव है यह तो! कृष्ण का गोवधन - गायों का वर्धन कृष्ण भगवान के काल में हिंसा बहुत बढ़ गई थी। तब कृष्ण भगवान ने फिर क्या किया? गोवर्धन पर्वत उठाया, एक उँगली से। अब गोवर्धन पर्वत उँगली पर उठाया, वह शब्द स्थूल में रह गया। परन्तु लोग उनकी सूक्ष्म भाषा समझे नहीं। गोवर्धन मतलब गायों का वर्धन कैसे हो, ऐसा सब जगह-जगह आयोजन किया और गौरक्षा का आयोजन किया। वर्धन का और रक्षा का दोनों आयोजन किए। क्योंकि हिन्दुस्तान के लोगों का मुख्य जीवन ही इस पर आधारित है। इसलिए बहुत ही हिंसा बढ़ जाए न तब दूसरा सब छोड़कर पहले यह सँभालो। और जो हिंसक जानवर हैं न, उनके लिए तो हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। वे जानवर खुद ही हिंसक हैं। उनके लिए आपको कुछ करने की जरुरत नहीं है। उन्हें कोई मारता भी नहीं न और वे खाए भी नहीं जाते न! इस बिल्ले को कौन खाए? कुत्ते को कौन खा जाए? कोई नहीं खाए और किसी से खाया भी नहीं जाए। इसलिए यह अकेला ही, गोवर्धन और गौरक्षा, दो वस्तुएँ ही पहले पकड़ने जैसी है। गोवर्धन के बहुत उपाय करने चाहिए। कृष्ण भगवान ने एक उँगली के ऊपर गोवर्धन किया न, वह बहुत ऊँची चीज़ की थी। उन्होंने जगह ३० अहिंसा जगह गोवर्धन की स्थापना की थी और गौशालाएँ शुरू कर दी। हजारों गायों का पोषण हो ऐसा किया। गोवर्धन और गौरक्षा, ये दोनों स्थापित किए। रक्षा की इसलिए रुक गया। और फिर घर-घर घी, दूध सभी चीजें मिला करेंगी न! इसलिए गायों को बचाने के बदले गायों की आबादी किस प्रकार बढ़े, उसके लिए बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। गायें रखने से इतने फायदे हैं, गायों के दूध में इतना फायदे हैं, गायों के घी में इतने फायदे हैं, वह सब ओपन किया जाए और अनिवार्य तो नहीं परन्तु मरज़ी से, लोगों को खुद समझाकर और हर एक गाँव में गायों का रिवाज़ किया जाए तो गायें बहुत बढ़ जाएगी। पहले सब जगह गौशाला रखते थे, वहाँ हजार-हज़ार गायें रखते थे। इसलिए गायें बढ़ाने की ज़रूरत है। यह तो गायें बढ़ती नहीं और एक तरफ यह चलता रहता है। पर यह तो किसी को भी हमसे ना नहीं कहा जा सकता! ना कहे तो गुनाह कहलाता है। और कोई थोड़े ही गलत करता है? बचाता है न! प्रश्नकर्ता : हम गायें छुड़वाते नहीं, परन्तु आने से रोकते हैं। दादाश्री : हाँ, आने से रोकते रहो। उसके मूल मालिक को समझाओ कि इस तरह मत करना। अभी तो गोवर्धन और गौरक्षा, पहले ये दो नियम पकड़ो। दूसरे सब सेकन्डरी! यह कम्प्लीट हो जाएँ, फिर दूसरे। इसलिए यह गोवर्धन और गौरक्षा, ये दो कृष्ण भगवान ने ज्यादा पकड़ रखा था। और गोवर्धन करनेवाले गोप और गोपी। गोप मतलब गौ पालन करनेवाले! प्रश्नकर्ता : गोवर्धन, यह बात बहुत नयी ही मिली। दादाश्री : हाँ, बातें हैं ही सब। पर यदि उनका विवरण हो तब काम का। बाकी तो बातें सब होती हैं ही और सच्ची ही होती है। परन्तु ये लोग फिर उसे स्थूल में ले गए। कहेंगे, 'गोवर्धन पर्वत उठाया।' इसीलिए वे फ़ॉरेन के साइन्टिस्ट कहेंगे, 'पागल जैसी है यह बात, पर्वत उठाया जाता होगा किसी से?' उठाया, तो हिमालय क्यों नहीं उठाया? और फिर तीर
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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