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________________ अहिंसा १६ प्रश्नकर्ता : तो ऑफिसर किसके लिए करते हैं? दादाश्री : उनका कर्तव्य! पर अपने लिए नहीं। प्रश्नकर्ता : पर हमने तो कम्प्लेन की, पत्र लिखकर नोटिस दिया। दादाश्री : पर जिसे नहीं कहना हो वह नहीं कहे। जिसे नहीं करना हो वह कहेगा, 'भाई, मुझे यह नहीं चाहिए। मुझे यह पसंद नहीं है।' तो फिर? तो खुद की जिम्मेदारी नहीं है। और जिसे पसंद है उसकी जिम्मेदारी अहिंसा और घर में दस व्यक्ति हों और टंकी बिगड़ी है, उसे कौन साफ करवाने निकलेगा? जिसमें अहंकार हो वह निकलेगा, कि 'मैं कर दूंगा। वह आपका काम नहीं है। इसलिए अहंकारी को सारा दोष जाता है। प्रश्नकर्ता : पर वह उसके करुणा के भाव से करता है। दादाश्री : करुणा हो या चाहे जो। और ये पाप भी बँधेंगे। प्रश्नकर्ता : तो क्या करें? वह चाहे जैसा गंदा पानी पी लें? दादाश्री : इसमें चले ऐसा ही नहीं है। वह अहंकार किए बिना रहेगा ही नहीं। और ऐसा कुछ नहीं है, आपको तो सही शुद्ध ही पानी मिलता रहेगा। कोई अहंकारी आपके लिए शुद्ध ही कर देगा। हाँ, इस दुनिया में हर एक चीज है। कोई चीज़ ऐसी नहीं कि जो न मिले। पर आपका पुण्य अटका हुआ है सिर्फ। आपका जितना अहंकार उतना अंतराय। अहंकार निर्मूल हुआ कि सभी वस्तुएँ आपके घर! इस जगत् की कोई चीज़ आपके घर न हो वैसा नहीं रहेगा! अहंकार ही अंतराय है। है। प्रश्नकर्ता : इसलिए हर एक के खुद के भाव पर रहा? दादाश्री : हाँ, खुद का भाव किसमें है? उतनी उसकी जोखिमदारी! प्रश्नकर्ता : यह पानी की टंकी हो, उसमें चूहा मर गया या कबूतर मर गया, तो वह सारी साफसूफ करनी पड़ती है। साफसफाई करवाने के बाद उसमें दवाई छिड़कनी पड़ती है या फिर म्युनिसिपालिटीवाले को बुलवाकर दवाई छिड़कवाते हैं, ताकि सारे ही जीवजंतुओं का तो नाश हो न? तो वह पाप तो हुआ न? वह बंधन किसे पड़ा? करनेवाले को या करवानेवाले को? दादाश्री : करनेवाले और करवानेवाले दोनों को जाता है। पर अपने भाव में नहीं होना चाहिए। अपना ऐसा अभिप्राय नहीं होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : गंदगी मिटाने का भाव है। क्योंकि गंदगी नहीं मिटे तब सभी मनुष्य पानी पीएँगे तो उन्हें नुकसान होगा। दादाश्री : हाँ, पर वह तो दोष लगेंगे ही न! ऐसा है न, ऐसे दोष गिनने जाएँ न, तो इस जगत् में निरंतर दोष ही हुआ करते हैं। इसलिए आपको किसी की चिंता नहीं करनी है। आप अपना सँभालो। सब सबकी सँभालो। हर एक जीव मात्र अपना-अपना मरण और बाकी सब लेकर आए हैं। इसीलिए तो भगवान ने कहा है कि कोई किसी को मार सकता नहीं है। पर यह ओपन मत करना, नहीं तो लोग दुरुपयोग करेंगे। पढ़ाई में हिंसा? प्रश्नकर्ता : यह एग्रीकल्चर कॉलेज में पढ़ती है। स्टुडन्ट है यहाँ पर, तो कहता है, 'हमारे यहाँ कीट-पतंगे पढ़ने के लिए पकड़ने पड़ते हैं और उन्हें मारना पड़ता है, तो उसमें पाप बँधता है क्या? पकड़ें नहीं तो हमें मार्क्स नहीं मिलते परीक्षा में, तो हमें क्या करना चाहिए?' दादाश्री : तो भगवान को रोज़ प्रार्थना करो एक घंटा कि भगवान यह मेरे भाग्य में ऐसा कहाँ से आया, लोगों को सभी को कहीं ऐसा होता है?! तेरे हिस्से में आया है तो भगवान से प्रार्थना करना कि 'हे भगवान, क्षमा माँगता हूँ। अब ऐसा नहीं आए ऐसा करना।' प्रश्नकर्ता : मतलब, इसमें जो प्रेरणा देनेवाले टीचर होते हैं न, वे हमें ऐसा प्रेरित करते हैं कि आप इन कीट-पतंगों को पकड़ो और इस तरह से एल्बम बनाओ, तो उन्हें कोई पाप नहीं?
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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