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________________ १४४] [ रेवंतगिरिरासु तहिं पुरि सोहिउ पासजिणु, आसारायविहारु । निम्मिउ नामिहि निजजणणि, कुमरसरोवरु फारु ॥१०॥ तहि नयरह पुरवदिसिहि, उग्गसेण गढदुग्गु । आदिजिणेसरपमुहजिणमंदिरि भरिउ समग्गु ॥११॥ बाहिरि गढ दाहिणदिसिहि, चउरियवेहिविसालु । लाडुकलहहियओरडीय, तडि पसु ठाइ कराल ॥१२॥ तहि नयरह उत्तरदिसिहि, साल-थंभसंभार । मंडण महिमंडल........., मंडप दसह उयार ॥१३।। जोइउ जोइउ भवियण, पेमिं गिरिहि दुयारि । दामोदरु हरि पंचमउ, सुवन्नरेहनइ पारि ॥१४॥ अगुण अंजण अंबिलीय, अंबाडय अंकुल्लु । उंबरु अंबरु आमलीय, अगरु असोय अहल्लु ॥१५।। करवर करपट करणतर. करवंदी करवीरा । कुडा कडाह कयंब कड, करब कदलि कंपीर ॥१६।। 15 वेयलु वंजलु वउल वडो, वेडस वरण विडंग । वासंती वीरिणि विरह, वंसियालि वण चंग ॥१७॥ सींसमि सिंबलि सिरसामि, सिंधुवारि सिरखंडा । सरल सार साहार सय, सागु सिगु सिणदंड ॥१८॥ पल्लव-फुल्ल-फलुल्लसिय, रेहइ तहि वणराइ । तहि उज्जिलतलि धम्मियह, उल्लटु अंगि न माइ ॥१९॥ बोलावी संघह तणीय, कालमेघंतर पंथि । मेल्हविय तहिं दिढ धणीय, वस्तुपाल वरमंति ॥२०॥ प्रथमं कडवं ॥ 20 25 दुविहि गुज्जरदेसे रिउरायविहंडणु, कुमरपालु भूपालु जिणसासणमंडणु। तेण संठाविओ सुरठदंडाहिवो, अंबओ सिरिसिरिमालकुलसंभवो । पाज सुविसाल तिणि नठिय, अंतरे धवल पुणु परव भराविय ॥१॥ १. स्फार-प्रधान ॥ २. ऊलट-शुभ भावना ॥ ३. पद्या-पहाड उपर चडवा माटे पगथीयां बांधेलो रस्तो ॥ ४. निष्ठिता तैयार करावी ॥ ५ प्रपा पाणीनी परब ॥ D:\sukarti.pm5\3rd proof
SR No.009571
Book TitleVastupal Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages269
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
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