SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० रघुवंशमहाकाव्यम् [प्रथमःष्टायां पर्णशालायामधिवासं कृत्वा वंशचरित्रादिना शुद्धया पत्न्या सुदक्षिणया सह कुशनिर्मितशय्यायां सुप्तो वशिष्ठछात्राणां श्रुतेरध्ययनेन संसूचिततुर्ययामां रात्रि यापयामास। __इन्दु-उन राजा दिलीप ने कुलपति 'दश सहस्र मुनियों को अन्नादि देकर वेद पढ़ाने वाले ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी' की बताई हुई पर्णकुटी 'पत्तों से बनी हुई कुटी' में निवास करके 'वंश आदि से' शुद्ध धर्मपत्नी सुदक्षिणा के साथ कुशों से बनी हुई शय्या पर सोये हुए, वशिष्ठजी के विद्यार्थियों के वेदाध्ययन करने से ज्ञात हो गया है प्रातःकाल का होना जिसका ऐसी रात को बिताया ॥ ९५ ॥ इत्थं श्रीब्रजमोहनात्मजनुषा गोस्वामिविद्वद्वरश्रीदामोदरशास्त्रिशिप्यपदवीभाजाऽच्युतानुग्रहाद् । श्रीब्रह्मान्वितशङ्करेण विहिता व्याख्या सुधाऽऽख्या नवा पूर्ति श्रीरघुवंशनामकमहाकाव्याद्यसर्गेऽध्यगात् ॥१॥ इति श्रीब्रह्मशङ्करशर्मणा कृतया सुधाव्याख्ययाऽन्वितः; श्रीमहाकविकालिदासकृतौ श्रीरघुवंशमहाकाव्ये दिलीपस्य वशिष्ठा श्रमाभिगमनो नाम प्रथमः सर्गः समाप्तः ।
SR No.009567
Book TitleRaghuvansh Mahakavyam
Original Sutra AuthorKalidas Mahakavi
AuthorBramhashankar Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy