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________________ किरातार्जुनीयम् किरातार्जुनीय - एक सफल महाकाव्य संस्कृत के आलंकारिफों ने महाकाव्य के लक्षणों की एक पूर्ण सूची प्रस्तुत की है । ये लक्षण दो भागों में विभक्त हो सकते है — मुख्य तथा गौण | ४ मुख्य लक्षण - मुख्य लक्षण काव्य के तीन आवश्यक अंशों की विचारधारा पर आधृत हैं । ये आवश्यक अंश हैं— वस्तु, नेता और रस । महाकाव्य की कथावस्तु का आधार ऐतिहासिक होना चाहिए, काल्पनिक नहीं अथवा लोकप्रसिद्ध किसी महापुरुष के जीवन चरित का वर्णन होना चाहिए । इसमें कोई देवता या कुलीन क्षत्रिय जिसमें धीरोदात्तता आदि गुण हों नायक होता हैं । कहीं एक वंश के अनेक राजा भी नायक होते हैं । शृंगार, वीर तथा शान्त में से कोई एक रस प्रधान होता है । अन्य रस गौण होते हैं । गौण लक्षण - गौस लक्षण जो नियम निर्वाह के लिए हैं तथा टेकनिक से सम्बन्ध रखते हैं संख्या में अनेक हैं । उनके अनुसार (१) आरम्भ में आशीर्वाद नमस्कार या वर्ण्य वस्तु का निर्देश होता है (२) अध्याय अथवा परिच्छेद 'सर्ग नाम से अभिहित होने चाहिए (३) इसमें न बहुत छोटे और न बहुत बड़े आठ से अधिक सर्ग होते है (४) उनमें प्रत्येक में एक ही छन्द मिलता है परन्तु अन्तिम दो या तीन पद्य भिन्न छन्द या छन्दों में रचे जाने चाहिए; कहीं-कहीं सर्ग में अनेक छन्द भी मिलते हैं (५) सर्ग के अन्त में अगली कथा की सूचना होनी चाहिए ( ६ ) इसमे सन्ध्या, सूर्य, चन्द्रमा, रात्रि, प्रदोष, समुद्र, संभोग वियोग, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, संग्राम, यात्रा, विवाह इत्यादि का यथासम्भव साङ्गोपाङ्ग वर्णन होना चाहिए (७) कथावस्तु का विकास स्वाभाविक होना चाहिए और कथावस्तु की पाँच संधियाँ भलीभाँति क्रम में रहनी चाहिए । महाकाव्य के ये लक्षण किरातार्जुनीय में देखे जा सकते हैं। इसका कथानक महाभारत से लिया गया है । वर्ण्य विषय है - इन्द्रकील पर अर्जुन की तपस्या किरात वेशधारी शिव जी के साथ उनका युद्ध तथा शिव जी से पाशुपन अन्न की प्राप्ति । महाकाव्य के नायक हैं अर्जुन - एक धीरोदात्त क्षत्रिय जो नर के अवतार हैं । इसमें वीररस मुख्य है । अन्य शृंगारादि रस गौण हैं । इसमें १८ सर्ग हैं
SR No.009565
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorMardi Mahakavi
AuthorVirendrakumar Sharma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size83 MB
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