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________________ ५४ किरातार्जुनीयम् आकार (आकृति) को । उपैति = प्राप्त करता है, धारण करता है, दिखलात है । क्रियापवर्गेषु = कार्यों के समाप्त (पूर्ण) होने पर। अनुजीविसात्कृताः = सेवकों (अनुचरों, भृत्यो) को प्रदान की गई (सौंपी गई, दी गई, सेवकों के अधीन की गई)। सम्पदः = सम्पत्तियाँ, धन । अस्य = इस (दुर्योधन) की। कृतज्ञतां = कृतज्ञता ( उपकार की भावना, किए गए परिश्रम को समझने वाली वृत्ति) को । वदन्ति % कहती हैं। ___ अनु०-(आप लोगों से ) भयभीत (शङ्कित) रहता हुआ वह चारों और आत्मीय जनों को रक्षकों के रूप में नियुक्त करके भयरहित (शङ्कारहित, संदेहरहित) आकृति को धारण करता है। (सौंपे गए) कार्यों के पूर्ण (समात) हो जाने पर सेवकों को प्रदान की गई सम्पत्तियाँ (धन) इस (राजा दुर्योधन) की कृतज्ञता को अभिव्यक्त (प्रगट, प्रकाशित) करती हैं। व्या-अस्मिन् श्लोके वनेचरः दुर्योधनस्य भेदकौशलं दर्शयति । दुर्योधनस्य शङ्काभावः सुरक्षाव्यवस्था पारितोषिकादिप्रदानेन कृतज्ञतादिभावाः अप्यत्र प्रतिपादिताः । वञ्चकः दुर्योधनः स्वकीयराज्ये सर्वत्र आत्मीयान् जनान् रक्षकरूपेण नियुज्य निःशङ्कात् व्यवहरति । सः सर्वदा शङ्कया व्याकुलो वर्तते किन्तु आकृत्या सः शङ्कितो न प्रतिभाति । कर्मणां समाप्तिषु सः स्वसे केभ्यः प्रभूतं धनं ददाति । दुर्योधनेन सेवकेभ्यः प्रदत्ताः सम्पत्तयोऽस्य कृतज्ञता प्रकाशयन्ति । स-परेभ्यः इतरे इति परेतरे तान् (पञ्चमी तत्पु०) अथवा परान् इतरयन्ति इति परेराः तान् परेतरान् (द्वितीया तत्पु०) । क्रियायाः अपवर्गः क्रियापवर्गः तेषु क्रियापवर्गेषु (षष्ठी तत्पु०)। व्या-विधाय-वि+धा+क्त्वा-ल्यप। उपैति-उप+5+लट , अन्यपुरुष, एकवचन । टि०-मल्लिनाथ ने 'परेतरान्' पद के दो अर्थ किए हैं-(क) आत्मीय जनों को, विश्वास-पात्रों को। दुर्योधन आत्मीय जनों (आने लोगों) को रक्षक के रूप म नियुक्त करके भयरहित (शङ्कारहित) आकृति को धारण करता है। यद्यपि वह भय से व्याकुल है तथापि आकृति से वह भयभीत प्रतीत नहीं होता
SR No.009565
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorMardi Mahakavi
AuthorVirendrakumar Sharma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size83 MB
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