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________________ १२ किरातार्जुनीयम् प्रदर्शन के लिए ही लिखा । भारवि ने तन् धातु का हास्यास्पद रूप में बार-बार प्रयोग किया है। लिट् लकार का कर्मवाच्य और भाववाच्य में प्रयोग उन्हें बहुत प्रिय है । प्रयोग में कम आने वाले पाणिनि के अनेक सूत्रों का उदाहरण उन्होंने दिया है। शैली-महाकाव्य को एक नई शैली (जिसे विचित्र मार्ग कहते हैं ) प्रदान करने के कारण संस्कृत साहित्य में भारवि का नाम विशेष उल्लेखनीय है। विचित्र मार्ग की एक विशेषता यह है कि इसमें कथानक बहुत कम होता है और वर्णन अधिक । भारवि के पूर्ववर्ती वाल्मीकि तथा कालिदास के महाकाव्यों का कथानक अत्यन्त विस्तृत तथा परिमाण में विपुल है। कालिदास ने अपने रघुवंश के केवल १६ सों के भीतर दिलीप से प्रारम्भ कर अग्निवर्ण तक ग्घुवंश की अनेक पीढ़ियों का वर्णन बड़ी सफलता के साथ किया है । दूसरी ओर भारवि ने अर्जुन के किरात के पास जाने और उससे युद्ध कर अत्र प्राप्त करने की स्वल्प कला को १८ सर्गों में कह डाला है। इन्होंने अपने काव्य में पर्वत नदी, सन्ध्या, प्रातः, ऋतु तथा अनेक अन्य प्राकतिक दृश्यों के वर्णन में अनेक सग व्यय कर दिए हैं और इस प्रकार इस छोटे से कथानक को इतना अधिक विस्तार दिया है । इसका प्रभाव भारवि के महाकाव्य के कथा-प्रवाह पर पड़ा है। कालिदास जैसा कथा-प्रवाह भारवि के काव्य में नहीं मिलता। यह तो ठीक है कि महाकाव्य की कथावस्तु धीरे-धीरे आगे बढ़ा करती है, पर यह इतनी धीमी गति से तो नहीं बढ़नी चाहिए कि पाठक ऊबने लगे। कालिदास के. महाकाव्यों में भी वर्णनात्मक प्रसङ्ग हैं, उनकी कथा भी मन्द गति से ही आगे बढ़ती है परन्तु वे अपने वर्णनों को उस सीमा तक नहीं बढ़ाते कि पाठक ऊब जाय । इसके विपरीत भारवि, माघ और श्रीहर्प आदि में यह बात नहीं है । उनकी कथा का प्रवाह कहीं-कहीं बिल्कुल ही रुक जाता है। किसी वर्ण्य वस्तु. का वर्णन करते समय वे तब तक उत्ते नहीं छोड़ते जब तक उस विषय नम्बन्धी सारा खजाना समाप्त न हो जाय । इस प्रकार भारवि ने अलंकृत काव्यशैली का सूत्रपात किया और काव्यरचनापद्धति को एक नया मोड़ प्रदान किया है । इस शैली में पाण्डित्य-प्रदर्शन
SR No.009565
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorMardi Mahakavi
AuthorVirendrakumar Sharma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size83 MB
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