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________________ किरातार्जुनीयम् अर्थात्-विवेचना किए बिना किसी कार्य का आरम्भ नहीं करना चाहिए । सम्यक् विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने-आप को समर्पित करने वाली सम्पत्तियाँ विचारवान् पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। (तात्पर्य यह है कि जो कुछ किया जाय उसके आगे पीछे की सब बातों का विचार कर लेना चाहिए)। वह भूमिपाल जो न तो अत्यन्त सरलता और न अत्यन्त क्रूरता का अवलम्बन करता है, यथा समय और यथावसर कोमलता और क्रूरता दोनों का व्यवहार करता रहता है, वह सूर्य के समान समग्र संसार पर आधिपत्य स्थिर रखता है। समवृत्तिरुपैति मार्दवं समये यश्च तनोति तिग्मताम् । अधितिष्ठति लोकमोजसा स विवस्वानिव मेदिनीपतिः ॥ २॥३८ प्रकृति-चित्रण-महाकवि के प्रकृति-वर्णन भी चमत्कार-जनक हैं । हिमालय, गंधमादन और इन्द्रकील पर्वतों के अनेक वर्णन अत्यन्त प्रभावशाली हैं। ऋतु, जलक्रीडा, चन्द्रोदय, सूर्यास्त, रात्रि, प्रभात इत्यादि का वर्णन उन्होंने बड़ी कुशलना एवं सूक्ष्मता के साथ किया है। सभी में नवीनता एवं सजीवता है । भारवि का प्रकृति-वर्णन यद्यपि कालिदास के समान मनोरम एवं रमणीय नहीं है तथापि जितना भी वर्णन उन्होंने किया है वह प्रभावोत्पादक है। भारवि में वाल्मीकि और कालिदास जैसा प्रकृति के प्रति मोह नहीं है। उनमें कृत्रिमता है। प्रति-वर्णन करते समय भी वे चित्र-काव्य के मोह में पड़ जाते हैं। तथापि चतुर्थ सर्ग में शरद् ऋतु का उनका वर्णन अत्यन्त स्वाभाविक और मार्मिक है । चरित्र-चित्रण एवं संवाद-पात्रों के चरित्र-चित्रण में भी भारवि सफल हुए हैं। पात्रों के हृदयगत भावों के सम्यक् प्रकाशन के हेतु भारवि ने अपने काव्य में रोचक संवादों का सन्निवेश किया है। चरित्र-चित्रण की सफलता का श्रेय इन संवादों को ही है। पात्रों की विशिष्टताओं का प्रकाशन इन संवादों के माध्यम से ही हुआ है। वनेचर की स्वामिभक्ति, सत्यवादिता, निश्छलता, विनम्रता, साहस, स्पष्टवादिता; द्रौपदी की मानसिक पीड़ा, व्याकुलता, प्रतीकार
SR No.009565
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorMardi Mahakavi
AuthorVirendrakumar Sharma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size83 MB
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