SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ आचार्य, २ उपाध्याय, ३ तपस्वी, ४ शैक्ष (नवीन दीक्षित), ५ ग्लान (रोगी), ६ गण (बड़े मुनियों की परिपाटी के) ७ (कुल दीक्षा देने वाले आचार्य के शिष्य), ८ संघ, ९ साधु और १० मनोज्ञ (लोकमान्यचरित्र को पालन करने वाले) इन दश प्रकार के साधुओं की सेवा करना सो दश प्रकार का वैयावृत्य है। वाचनापृच्छनाऽनुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशा:।।२५।। १ वाचना (पढ़ना), २ पृच्छना (पूछना), ३ अनुपेक्षा (बारम्बार चितवन करना), ४ आम्नाय (पाठ का शुद्धता पूर्वक पढ़ना), ५ धर्मोपदेश धर्म का उपदेश देना) ये स्वध्याय के पाँच भेद हैं। बाह्याभ्यन्तरोपाध्योः।।२६।। धन धन्यादि बाह्य परिग्रह का तथा क्रोधादि अभ्यन्तर परिग्रह का त्याग इस प्रकार व्यत्सर्ग के दो भेद हैं। उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिंतानिरोधोध्यानमांतर्मुहूर्तात् ।।२७।। चिंताओं को रोककर एक ओर चितवृत्ति का लगाना एकाग्रचिंता निरोध ध्यान है वह उत्तम संहनन वाले के अंतर्मुहूत तक होता है। आरौिद्रधर्म्यशुक्लानि ।।२८।। आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल ये चार प्रकार के ध्यान हैं परे मोक्ष हेतू।।२९।। आगे के दो धर्म्य और शुक्लध्यान मोक्ष के कारण हैं। आर्तममनोज्ञस्यसम्प्रयोगेतद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः।।३०।। अनिष्ट पदार्थों के संयोग हो जाने पर उसको दर करने के लिए बारम्बार चिंता करना सो पहला आर्तध्यान है।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy