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________________ ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धि स्मृत्यन्तराधानानि ।। ३० ।। ऊर्ध्व दिशा का, अधो दिशा का, तिर्यग् दिशा का उल्लंघन तथा क्षेत्र वृद्धि व स्मृति का विस्मरण हो जाने से नियम के बाहर की दिशाओं का गमन करना ये पाँच दिग्व्रत के अतीचार हैं। आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ।।३१ ।। मर्यादा से बाहर की वस्तु मंगवाना, भेजना, शब्द करके बुलाना अपना रूप दिखाकरके बुलाना, पत्थर आदि फेंकना ये पाँच देशावकाशिक व्रत के अतीचार हैं। कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि॥ ३२ ॥ रागयुक्त असभ्यवचन बोलना, काय से कुचेष्टा करना, निरर्थक प्रलाप करना, बिना विचारे अधिक प्रवृत्ति करना, भोगोपभोग के पदार्थों का आवश्यकता से अधिक संग्रह करना ये पाँच अनर्थ दंड व्रत के अतीचार हैं। योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ।।३३।। मन, वचन और काय का अन्यथा चलायमान करना ये तीन तथा अनादर और सामायिक की विधि को पूर्ण नहीं करना ये पाँच सामायिक व्रत के अतीचार हैं। अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोप क्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ।।३४।। अप्रत्यवेक्षित (बराबर देखे बिना) अप्रमार्जित (प्रमार्जन किये बिना) उत्सर्ग (मल मूत्रादि करना) तथा आदान उपकरण ग्रहण
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
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