SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारकाणां च द्वितीयादिषु ।। ३५ ।। इसी प्रकार दूसरे तीसरे आदि नरकों में भी जघन्य आयु समझ लेनी चाहिए। है। दशवर्ष सहस्राणि प्रथमायाम् ॥३६।। पहिले नरक में दशहजार वर्ष की जघन्य आयु है । भवनेषु च।।३७।। भवनवासियों में भी जघन्य आयु दशहजार वर्ष की है। व्यंतराणां च ॥ ३८ ॥ व्यंतर देवों की भी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है। परा पल्योपममधिकम्।। ३९ ।। व्यंतरों की उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम से कुछ अधिक हैं ज्योतिष्काणांच ॥ ४० ॥ ज्योतिष्क देवों की भी उत्कृष्ट आयु एक पल्य से कुछ अधिक तदष्ट भागोऽपरा च । ४१ ।। ज्योतिष्क देवों की जघन्य आयु एक पल्य के आठवें भाग प्रमाण है। लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम ॥ ४२ ॥ समस्त लौकान्तिक देवों की उत्कृष्ट और जघन्य आयु आठ सागर की है। इति तत्वार्थाधिगमे मोद्यशास्त्रे चतुर्थोऽध्यायः ।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy