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________________ विमानों में रहने वाले वैमानिक देव कहलाते हैं। अब उनके विशेष भेद आगे कहेंगे। कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥ १७ ॥ उक्तवैमानिक देव कल्पोपपन्न और कल्पातीत के भेद से दो प्रकार के हैं। उपर्युपरि ।।१८।। वे एक एक के ऊपर स्थित हैं। सौधर्मैशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलांतवका– पिष्ट शुक्रमहाशुक्रसतारसहस्ररेष्वानतप्राणतयोरार— णाच्युतयोर्नवसुग्रैवेयकेषु विजयवैजयंतजयंतापरा— जितेषु सर्वार्थसिद्धौच।।१९।। सौधर्म, ऐशान, सनत्कुमार, महेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ट, शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन १६ स्वर्गों में तथा नव ग्रैवेयक और विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित नाम के विमानों में तथा सर्वार्थसिद्धि में वैमानिक देवों का निवास है । स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविष यतोऽधिकाः।।२०।। आयु, प्रभाव, सुख, कांति, लेश्या की विशुद्धता, इन्द्रियों का और अवधिज्ञान का विषय ये सब ऊपर ऊपर के देवताओं में अधिक हैं। गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतोहीनाः ।। २१ ।। किन्तु, गति, शरीर का परिमाण, परिग्रह और अभिमान इन विषयों में ऊपर ऊपर के देव हीन हैं।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
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