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________________ भरतहैमवतहरिविदेहरम्यक् हैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि।।१०।। इस जम्बूद्वीप में भरत हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत्, और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। तद्विभाजिन: पूर्वापरायताहिमवन्महाहिमवन्निष धनीलरुक्मिशिखरिणी वषधर पर्वताः। ११ ।। उन क्षेत्रों को जुदा करने वाले पूर्व से पश्चिम ऐसे हिमवान्, महाहिमवान् निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये छ: वर्षधर पर्वत हैं। हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः।।१२।। वे पर्वत क्रमश: पीत, शुक्ल, तपाये हुए सोने के समान, नील, शुक्ल और पीले रंग वाले हैं। मणिविचित्रापार्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ।।१३।। इन पर्वतों के पार्श्व भाग मणियों से विचित्र हैं और ये ऊपर, मध्य व मूल में समान विस्तार वाले हैं। पद्ममहापद्मतिगिंछकेसरिमहापुण्डरीक पुण्डरीकाहृदास्तेषामुपरि।।१४।। उन पर्वतों पर क्रमश: पद्म, महापद्म तिगिंछ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये छः ह्रद अर्थात् सरोवर हैं। प्रथमोयोजनसहनायामसतदर्द्धविष्कंभोहृदः ।।१५।। इनमें से पहिलाहृद पूर्व से पश्चिम एक हजार योजन लम्बा तथा उत्तर से दक्षिण पाँचसो योजन चौड़ा है। दशयोजनावगाहः।।६।। यह पद्म सरोवर दश योजन गहरा है।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
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