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________________ - है, वही सम्यग्ज्ञान है वही मोक्ष का मार्ग है, वह सब कुछ है। जीव का वह सौभाग्य कैसे जगे ? कैसे इसको स्वानुभव हो? इसका मार्ग यही है कि कोई आत्मानुभवी गुरू यदि सुलभ हो तो उसके उपदेश से सम्पूर्ण वस्तु - तत्व को जान कर (गुरू होना चाहिए अनुभवी ही, क्योंकि जो स्वयं उस मार्ग से न गया हो वह दूसरे को मार्ग क्या दिखायेगा) और यदि ऐसा गुरू प्राप्त न हो तो स्वयं ही अध्यात्म ग्रन्थों का खूब. अभ्यास करके, उनसे आत्मा के बारे में जानकर, अपने भीतर वह आत्मा को देखे। गुरू की इस सम्बन्ध में बड़ी महत्ता है क्योंकि वह जीवंत शास्त्र है, कहीं भी कुछ छोटी-सी भूल या रुकावट यदि है तो वह हाथ पकड़कर झट रोक देगा। परन्तु फिर भी यदि ऐसा गुरू उपलब्ध न हो पाये, तो भगवान कुंदकुंद की वाणी का तो इस जीव को सहारा है ही। आत्मा के बारे में पूरी जानकारी अध्यात्म ग्रंथों से इसे हो जायेगी और स्वानुभूति का तरीका भी ज्ञात हो जायेगा। वह इसकी बुद्धि में खूब अच्छी तरह बैठ जाए कि वस्तु - तत्व यही है, इसी प्रकार है, दूसरा नहीं हैं, और दूसरी प्रकार हो भी नहीं सकता। फिर उसके बाद यह अपने अन्दर ही जहाँ 'वह' है उस चैतन्य को देखने का पुरुषार्थ करे।। वह देवों का देव इसके भीतर ही विराज रहा हैं। कहीं बाहर नहीं है। उसे यह भीतर ही देखे, ढूंढे तो उसकी प्राप्ति अवश्य होगी क्योंकि वहाँ वह स्वयं है ही। दो बातों का ज्ञान तो इसे दिया जा सकता है, आत्मा के बारे में ज्ञान एवं अनुभव के मार्ग का ज्ञान, पर अनुभव का पुरूषार्थ तो इसे स्वयं ही करना है। आत्मा के बारे में जानना शास्त्र से हो जाता है अथवा शास्त्र के जानकार के द्वारा हो सकता है परन्तु आत्मा को जानना स्वानुभूति के द्वारा हो सकता है। (( 19 ))
SR No.009562
Book TitleSwanubhava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherBabulal Jain
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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