SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुरी तरह प्यासी हो जाती है तो फट जाती है - प्यास के मारे अपना मुंह खोल देती है - उस समय वर्षा अवश्य होती ही है। उसी प्रकार यहाँ भी ऐसा पात्र जब तैयार होता है ताक कहीं विपुलाचल से मेघ - गर्जना (वर्षा) होनी ही पड़ती है। पात्र ही वर्षा को नहीं खोजता, कभी-कभी वर्षा भी पात्र को खोज लेती है। भगवान सर्वज्ञ कहते हैं कि तू अपने पात्र को सीधा तो कर, वर्षा आयेगी, जरूर आयेगी। अगर पात्र ही उल्टा रखा हो तो बरसात भी क्या करेगी आकर, वह आई हुई भी नहीं आने के ही बराबर है और यदि लेरा पात्र सीधा हो तो 'देशना' की प्राप्ति तुझे अवश्य होगी, अवश्य ही किसी कुन्दकुन्द की दया को बहना होगा, कि यह मौका मत चूक जाना, यह चूक गया तो अनंत संसार में रुलना पड़ेगा। अब तो स्वभाव को देख, ज्ञान के उस अखंड पिण्ड को देख जो वास्तव में तू है। वर्तमान में तुझमें इतनी शक्ति है कि गृहस्थी में रहते हुए भी तू सवयं को, इस भगवान आत्मा को देख सकता है। - आँख से नहीं, इन्द्रियों से नहीं अपितु स्वयं से ही देख सकता है। अपने को अपने रूप देखना गृह - त्याग की या किसी निर्जन सुनसान वन की अपेक्षा नहीं रखता। अभी इसी समय, इसी परिस्थिति में, इसी क्षेत्र में तू उस अप्रतिम आनन्द को प्राप्त हो सकता है, उस चैतय का अनुभव कर सकता है, और यही वास्तव में धर्म है। धर्म के साथ कोई ऐसी बात नहीं कि आज करों और फल चार दिन बाद मिले। धर्म रूप तुम अभी हो जाओ और अभी शान्ति की प्राप्ति कर लो। देख, कहीं एक समय भी, एक क्षण भी, व्यर्थ न चला जाए। वह कहीं बाहर नहीं, तू ही हैं, इसलिए तू उसे पा सकता है। वह इन चर्म- चक्षुओं से नहीं दीखेंगा, उसे देखने के लिए तो तुझे भीतर की आँखे खोलनी होगी। भीतरी आँखें खोलने पर तुझे ज्ञानरूपी समुद्र स्वयं का आहवान 1(17)
SR No.009562
Book TitleSwanubhava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherBabulal Jain
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy