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________________ १०२ कुन्दकुन्द - भारता जैसे स्फटिकमणि स्वयं शुद्ध है, वह राग-लालिमा आदिरूप स्वयं परिणमन नहीं करता, किंतु अन्य लाल आदि द्रव्योंसे लाल आदि रंग रूप हो जाता है। इसी प्रकार ज्ञानी स्वयं शुद्ध है, वह राग-प्रीति आदि रूप स्वयं परिणमन नहीं करता किंतु अन्य रागादि दोषोंसे रागादि रूप हो जाता है।।२७८-२७९।। आगे ज्ञानी रागादिका कर्ता क्यों नहीं है? इसका उत्तर देते हैं -- 'य रायदोस मोहं, कुव्वदि णाणी कसायभावं वा । यमपणो ण सो तेण कारगो तेसि भावाणं । । २८० ।। ज्ञानी स्वयं राग द्वेष मोह तथा कषायभावको नहीं करता है इसलिए वह उन भावोंका कर्ता नहीं है ।। २८० ।। आगे अज्ञानी रागादिका कर्ता है यह कहते हैं - -- रायम्ह य दोसम्हि य, कसायकम्मेसु चेव जे भावा । तेहिं दु परिणमंतो, रायाई बंधदि पुणोवि । । २८१ । । राग, द्वेष और कषाय कर्मके होनेपर जो भाव होते हैं उनसे परिणमता हुआ अज्ञानी जीव रागादिको बार बार बाँधता है ।। २८१ । । उक्त कथनसे जो बात सिद्ध हुई उसे कहते हैं रायम्हि य दोसम्हि य, कसायकम्मेसु चेव जे भावा । तेहिं दु परिणमंतो, रायाई बंधदे चेदा । । २८२ ।। राग, द्वेष और कषाय कर्मके रहते हुए जो भाव होते हैं उनसे परिणमता आत्मा रागादिको बाँध है ।। २८२ ।। आगे कोई प्रश्न करता है कि जब अज्ञानीके रागादिक फिर कर्मबंधके कारण हैं तब ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा रागादिकका अकर्ता ही है? इसका समाधान करते हैं. अपडिक्कमणं दुविहं, अपच्चक्खाणं तहेव विष्णेयं । एएणुवएसेण य, अकारओ वण्णिओ चेया । । २८३ ।। अपडिक्कमणं दुविहं, दव्वे भावे तहा अपच्चक्खाणं । "एएणुवएसेण य, अकारओ वण्णिओ चेया । । २८४ ।। १. गवि ज. वृ. ५. . एदेणुवदेसेण दु अकारगो वण्णिदो चेदा। ज. वृ.। २. ते सम ज. वृ. । ३. ते मम दु ज. वृ. । ४. एदेणुवदेसेण दु अकारगो वण्णिदो चेदा। ज. वृ.।
SR No.009561
Book TitleSamaya Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages79
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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