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________________ समयसार आत्मा पुद्गलमय कर्ममें द्रव्य तथा गुणको नहीं करता है फिर उसमें उन दोनोंको नहीं करता हुआ वह आत्मा उस पुद्गलमय कर्मका कर्ता कैसे हो सकता है? ।।१०४ ।। आगे, आत्मा द्रव्यकर्म करता है यह जो कहा जाता है वह केवल उपचार है ऐसा कहते हैं - जीवम्हि हेदुभूदे, बंधस्स दु पस्सिदूण परिणामं। जीवेण कदं कम्मं, भण्णदि उवयारमेत्तेण ।।१०५ ।। जीवके निमित्त रहते हुए कर्मबंधका परिणाम देखकर उपचारमात्रसे ऐसा कहा जाता है कि जीवने कर्म किये हैं।।१०५।। आगे इस उपचारको दृष्टांत द्वारा स्पष्ट करते हैं -- जोधेहिं कदे जुद्धे, राएण कदंति जंपदे लोगो। तह ववहारेण कदं, णाणावरणादि जीवेण।।१०६।। जिस प्रकारसे योद्धाओंके द्वारा युद्ध किये जानेपर लोग ऐसा कहते हैं कि युद्ध राजाने किया है, इसी प्रकार व्यवहारसे ऐसा कहा जाता है कि जीवने ज्ञानावरणादि कर्म किये हैं।।१०६ ।। इससे यह बात सिद्ध हुई कि -- उप्पादेदि करेदि य, बंधदि परिणामएदि गिण्हदि य। आदा पुग्गलदव्वं, ववहारणयस्स वत्तव्वं ।।१०७।। आत्मा पुद्गल द्रव्यको उत्पन्न करता है, बाँधता है, परिणमाता है तथा ग्रहण करता है यह सब व्यवहार नय कहता है।।१०७।। आगे इसी बातको दृष्टांतके द्वारा स्पष्ट करते हैं -- जह राया ववहारा, दोसगुणुप्पादगोत्ति आलविदो। तह जीवो ववहारा, दव्वगुणुप्पादगो भणिदो।।१०८।। जिस प्रकार राजा दोष और गुणका उत्पादक है ऐसा व्यवहारसे कहा गया है उसी प्रकार जीव, द्रव्य और गुणका उत्पादक है ऐसा व्यवहारसे कहा गया है। भावार्थ -- जिस प्रकार प्रजामें दोष और गुण स्वयं उत्पन्न होते हैं परंतु व्यवहार ऐसा होता है कि ये दोष और गुण राजाने उत्पन्न किये हैं, उसी प्रकार पुद्गल द्रव्यमें ज्ञानावरणादि कर्मरूप परिणमन स्वयं होता है, परंतु व्यवहार ऐसा होता है कि ये ज्ञानावरणादि कर्म जीवने किये हैं।।१०८ ।। आगे कोई प्रश्न करता है कि यदि पुद्गल कर्मको जीव नहीं करता है तो दूसरा कौन करता है? इसका उत्तर कहते हैं --
SR No.009561
Book TitleSamaya Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages79
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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