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________________ मिटाते हुए आगे बढ़ते हैं वे मोहनीय कर्म का सर्वथा नाश करके कषाय-रहित बारहवें क्षीणमोह' गुणस्थान में प्रवेश करते हैं। वहाँ, शुक्लध्यान में गहराई और बढ़ती है; शुक्लध्यान के दूसरे चरण द्वारा शेष तीन घातिया कर्मों-ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय-का भी नाश हो जाता है तथा तेरहवें गुणस्थान के प्रथम समय में अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्त आत्मशक्ति, आत्मा के ये स्वाभाविक गुण प्राप्त हो जाते हैं। जो शक्तियाँ संसार-अवस्था में किंचित् मात्र ही व्यक्त हो पा रही थीं वे अब पूर्ण रूप से व्यक्त हो जाती हैं। यही अर्हन्त अवस्था है। यहाँ ज्ञान स्वयं में, ज्ञान में ही प्रतिष्ठित है, स्वरूप के आनन्द में मग्न है। अनन्त शक्ति के साथ अनन्त आनन्द का भोग हो रहा है। अघातिया कर्म अभी शेष हैं जिनके सद्भाव में समवशरण की रचना आदि होती है और बिना किसी प्रयत्न या इच्छा के सहज-स्वाभाविक रूप से वाणी खिरती है-प्राणीमात्र को आत्मकल्याण का, दुख से छूटने का और परमात्मा बनने का मार्ग मिलता है। जब आयुकर्म की स्थिति लगभग समाप्त होने वाली होती है तो सूक्ष्म काययोग में रहने वाले वे सयोगी-जिन शुक्लध्यान के तीसरे चरण द्वारा योगनिरोध करके चौदहवें गुणस्थान-अयोगी-जिन अवस्था में पहुंचते हैं। यहाँ शुक्लध्यान के चौथे चरण द्वारा वे अयोगी-जिन चार अघातिया कर्मों-वेदनीय, नाम, गोत्र और आयु का नाश करके तथा तीन शरीरों-औदारिक, तैजस और कार्माण से सम्बन्ध-विच्छेद करके सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं। शरीर से रहित, जन्म-मरण से रहित, पूर्ण शुद्ध अवस्था, यही परमात्म अवस्था है जिसका चिंतवन-मनन-ध्यान करके संसारी जीव उन-जैसा होने का पुरुषार्थ करता है। कैसा है इस शुद्धात्मा का, सिद्धात्मा का स्वरूप ? न कोई राग है न द्वेष। ज्ञानादि गुण सब पूर्णता को प्राप्त हो गये हैं। अब कुछ भी करना शेष नहीं है-आत्मा कृतकृत्य हो गया है। अब कुछ भी होना शेष नहीं है, स्वभाव की पूर्णता होने के बाद कुछ होना बाकी ही नहीं रहता। जिसे अभी तक प्राप्त नहीं किया था, ऐसे उस निज-स्वभाव को आज प्राप्त कर लिया है, जिस पर को ग्रहण किया हुआ था वह सब न जाने कहाँ छूट गया। अब न कुछ ग्रहण करने को शेष है, न छोड़ने को। यह आत्मा परमात्मा, (६४)
SR No.009559
Book TitleParmatma hone ka Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherDariyaganj Shastra Sabha
Publication Year1990
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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