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________________ ७६ पदार्थ विज्ञान पदार्थके टुकडे नही हो जाते । प्रदेश स्वयं परमाणु नहीं है, बल्कि उस अखण्ड पदार्थका उतना भाग है जितना कि एक परमाणु द्वारा मापा गया है। १० जीवका परिमाण ___ बस इस प्रकार मापनेपर जीव पदार्थ असख्यात प्रदेशोवाला जाननेमे आता है, अर्थात् इसके गणनातीत प्रदेश हैं। इसका अर्थ इतना ही है कि यदि जीव पदार्थमे नीचेसे ऊपर, आगेसे पीछे तथा दायेंसे बायें सभी ओर परमाणुओको चिना जाये तो उन परमाणुओकी गणना असख्यात होगी। असख्यात प्रदेशोका यह अर्थ कदापि नही कि असख्यात पृथक् पृथक प्रदेशोसे मिलकर एक जीव पदार्थ बना है। वह अखण्ड है अर्थात् तोडा-जोडा नही जा सकता। __ परन्तु असख्यात प्रदेश कहनेपर यह पता न चला कि आखिर वह कितना बड़ा है, क्योकि असख्यात कितने बडेको कहते हैं, यह । ही हमे पता नहीं। इसलिए दूसरी प्रकारसे उसका माप करनेपर कहा जाता है कि वह लोक-परिमाण है। अर्थात् जीवको शरीरसे पृथक् होकर यदि फैलनेको छूट दे दी जाये तो वह सारे लोकमे इस प्रकार व्याप्त हो जाये जैसे कि तिलोमे तेल। इसका तात्पर्य यह है कि जीव उतना ही बडा है जितना बडा कि लोक । आकाशका उतना भाग जितनेमे कि इस अखिल सृष्टिकी रचना हुई है 'लोक' कहलाता है । इसका विशेष कथन आगे आकाश-पदार्थक विस्तारमे आयेगा। वह लोक असख्यातप्रदेशी है और उतना ही बड़ा जीवपदार्थ भी है। ११. जीवकी सकोच-विस्तार शक्ति अब प्रश्न होता है यह कि पहले जिसको देह परिमाण बताया गया है, उसको ही अब लाक-परिमाण बताया जा रहा है । इन
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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