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________________ पदार्थ विज्ञान जिस प्रकार दीपकका हीन प्रकाश अल्पमात्र वस्तुओको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार हम लौकिक व्यक्तियोका होन ज्ञान अल्पमात्र वस्तुओको जानता है। जिस प्रकार सूर्यका पूर्ण प्रकाश सकल विश्वको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार योगी जनोका पूर्ण ज्ञान सम्पूर्ण विश्वको युगपत् जानता है । जिस प्रकार सूर्यके आगे बादलोका आवरण आ जानेसे सूर्यका प्रकाश बहुत धीमा हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञानके आगे सकल्प-विकल्पोका आवरण आ जानेसे ज्ञानका प्रकाश भी बहुत धीमा हो जाता है । कमरे की सीमाओ रहनेवाला तुच्छमात्र भी प्रकाश यदि सम्पूर्ण वस्तुओको प्रकाशित करने में समर्थ नही तो इससे प्रकाशके स्वभावकी हीनता प्रकट नही होती, बल्कि दीपककी ही हीनता प्रकट होती है, इसी प्रकार सकल्प-विकल्पोकी सीमाओमे रहनेवाला हम लौकिक व्यक्तियोका तुच्छमात्र ज्ञान यदि सम्पूर्ण विश्वको जाननेमे समर्थ नही, तो इससे ज्ञानके स्वभावकी हीनता प्रकट नही होती, बल्कि व्यक्तिकी ही ता प्रकट होती है । जिस प्रकार बादलोके आवरणरहित सूर्यका प्रकाश पूर्ण होनेके कारण समस्त वस्तुओको युगपत् दर्शाता है इसी प्रकार सकल्पोके आवरण तथा सीमारहित योगियोका ज्ञान पूर्ण होने के कारण समस्त विश्वको युगपत् जानता है । ६४ ज्ञानका यह असीम तथा निरावरण रूप ही उसका स्वभाव है । वही चेतनका लक्षण है । क्योकि यह समस्त सकल्पो-विकल्पो आदिसे अर्थात् अन्त करणसे अतीत है, इसलिए इसे मन तथा बुद्धिसे परे कहा है । सकल्प-विकल्प चचल होते हैं, इस कारण इनमे रहनेवाला ज्ञान भी वायुसे ताडित दीपककी शिखावत् चचल होता है । ज्ञानकी चचलता ही व्याकुलताके रूपमे जानी जाती है । वही मानसिक दुख है, वही आनन्दका आवरण है । सकल्पविकल्पोसे रहित ज्ञान भी वायुरहित दीपशिखावत् स्थिर होता है । 1
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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