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________________ पदार्थ विज्ञान और भी देखिए, स्वर्ण यद्यपि कडा, कुण्डल तथा डली आदिके रूपमे उपलब्ध होता है. परन्तु क्या कड़ा, कुण्डल या डली आदिकी आकृतियां स्वर्ण हैं ? स्वर्ण- पाषाणमे कीट तथा स्वर्णके जेवरमे यद्यपि ताम्र आदिका खोट उपलब्ध होता है, परन्तु क्या यह किट्टी व खोट स्वर्ण है ? स्वणमे से यदि इन आकृतियोको तथा खोटको दूर कर दिया जाये तो क्या वहाँ शून्य रह जायेगा ? जिस प्रकार आकृतियाँ व खोट स्वर्ण मे अवश्य हैं, पर वह स्वर्णका स्वरूप नही हैं, स्वर्ण तो उनके पीछे रहनेवाला वह पदार्थ है, जिसमे कि वे हैं । इसी प्रकार सकल्प-विकल्प तथा दुख-सुख ज्ञानमे अवश्य हैं, पर वे ज्ञानके स्वरूप नही हैं । ज्ञान तो उनके पीछे रहनेवाला वह पदार्थ है जिसमे कि वे प्रतिभासित हो रहे हैं । जिस प्रकार सर्वं आकृतियां तथा खोट दूर कर देनेपर स्वर्ण भले ही हाथोसे पकड़ा न जा सके परन्तु वह वस्तु स्वरूपसे जाननेमे अवश्य आ सकता है, जिसकी कोई आकृति - विशेष नही है । उसी प्रकार सकल्प-विकल्प तथा दुखसुख दूर कर देने पर भी ज्ञान अवश्य जाननेमे आ सकता है, जिसकी कोई आकृति या रूप - विशेष नही है । ६२ जिस प्रकार सम्पूर्ण तरंगो तथा अशुद्धियोंसे शून्य जलको हम जल मात्र ही कह सकते हैं अन्य कुछ नही, और जिस प्रकार सम्पूर्ण आकृतियो तथा अशुद्धताओ से स्वर्णको हम शून्य स्वर्ण मात्र कह सकते हैं अन्य कुछ नही, उसी प्रकार सम्पूर्ण विकल्पसमूह तथा दुख-सुखसे शून्य ज्ञानको हम ज्ञान मात्र कह सकते हैं अन्य कुछ नही । जिस प्रकार जल मात्र जलका स्वरूप है और स्वर्ण मात्र स्वर्णका स्वरूप है, उसी प्रकार ज्ञान मात्र ज्ञानका स्वरूप ' है । जिस प्रकार जलका स्वरूप तरलता, शीतलता तथा स्वच्छता मात्र ही जाननेमे आता है, और जिस प्रकार स्वर्णका स्वरूप पीलापन, भारीपन तथा चमकदार मात्र ही जाननेमे आता है, उसी
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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