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________________ २ पदार्थ सामान्य कभी न उनका प्रत्यक्ष किया जा सकता है और न उन्हे अनुमान द्वारा जाना जा सकता है। यहाँ भी दार्शनिक जन कुछ और सूक्ष्मतासे विचार करते है। यद्यपि जाननेकी अपेक्षा देखे तो पदार्थ, गुण तथा पर्याय तीनो ही सत् हैं, परन्तु दूसरी दृष्टिसे देखें तो कुछ और ही दीखने लगता हैं। अरे । वास्तवमे सत् तो वह है जो टिका रहे अर्थात नित्य है। क्षणिक वस्तुका क्या सत् ? अब है और अब नही, यह तो स्वप्न सरीखा है । एक वस्तु दिखाई दो परन्तु पकडनेको जावें तो वहां कुछ भी न मिले, उसका क्या सत् ? बिजलो कड़की तथा दिखाई तो अवश्य दी परन्तु पकडनेको गये तो लुप्त हो गयी। इसी प्रकार बादलोमे नगर बसा परन्तु टिकाने का विचार किया. इतनेमे लुप्त हो गया। ऐसे क्षणिक पदार्थों का क्या सत् ? अतः क्षणभरके लिए भले सत् हो पर ज्ञानीजन इन्हें असत् तथा भ्रम ही कहते हैं । इसी प्रकार बाल-वृद्ध आदि मनुष्यको पर्यायें तथा कच्चापक्का आदि आमकी पर्यायें, अथवा खट्टी-मीठी आदि रस गुण की पर्यायें सब क्षणिक होनेके कारण असत् है। यह बात ठीक है कि ये पर्यायें बिजलीकी भाँति दीखकर तुरन्त लुप्त नही होती, पकडने तथा भोगनेमे भी आती हैं, परन्तु ऐसा केवल स्थूल दृष्टिसे दीखता है । दार्शनिकोको दृष्टि अत्यन्त सूक्ष्म होती है। जैसा कि पहले वताया गया है पर्याय प्रतिक्षण बदलती है, अधिक देर तक टिकनेवाली कोई पर्याय नही होती, वह केवल अनेक क्षणिक पर्यायोका समूह है। जैसे कि पाषाण-स्तम्भोका एक हिजार वर्षके पश्चात् क्षीण हो जाना कोई आकस्मिक घटना नही है बल्कि अनन्तो क्षणिक घटनाओका फल है। इस दृष्टिसे देखनेपर पर्याय मात्र ही क्षणिक होनेके कारण असत् है, मिथ्या है, माया है, प्रपंच है । अपने गुणोका पिण्डरूप वह मूल पदार्थ हो मत् है ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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