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________________ २ पदार्थ सामान्य होकर नष्ट हो जाती है। इस प्रकार एक ही पदार्थमे एक ही समय तीन बातें दिखाई देती है-उत्पत्ति, विनाश व ध्र वता। नयी पर्यायको उत्पत्ति, पुरानी पर्यायका विनाश और मूलपदार्थकी ध्रुवता। पक्की पर्यायकी उत्पत्ति, कच्ची पर्यायका विनाश और आम पदार्थकी ध्रुवता-ये तीनो एक ही समयमे है । वृद्ध पर्यायकी उत्पत्ति, बालक पर्यायका विनाश और मनुष्य पयार्थकी ध्रुवता ये तीनो एक ही समयमे है। इस प्रकार एक ही पदार्थमे उत्पत्ति, विनाश व ध्रुवता ये तीनो बातें एक ही समयमे है। ऐसा ही पदार्थ या वस्तुका स्वभाव है। सैद्धान्तिक भाषामे इसी बातको इस रूपमे कहा जा सकता है कि पदार्थ उत्पत्ति, विनाश व ध्रुवस्वभाववाला है, अर्थात् उत्पाद व्यय ध्रौव्य स्वभाववाली ही पदार्थ की सत्ता होती है। ७. नित्य तथा अनित्य-स्वभाव पदार्थ ध्रुव है और उसकी अवस्थाएँ परिवर्तनशील अर्थात् उत्पत्ति तथा विनाशवाली हैं। परिवर्तन पानेवाली हर अवस्थामै पदार्थका ज्योका त्यो टिका रहना ही उसकी ध्रुवता है। ध्रुव कहो या नित्य कहो एक ही अर्थ है। इसी प्रकार परिवर्तन करना कहो या अनित्य कहो एक ही बात है। पहले बता दिया गया है कि यद्यपि स्थूल दृष्टिसे देखनेपर पदार्मनी अवस्थाएं या पर्याय बहुत-बहुत देरके पश्चात् बदलती दिखाई देती हैं, परन्तु सूक्ष्म दृष्टिसे देखनेपर प्रतिक्षण वदल रही है। यदि प्रतिक्षण बदलनेवाली पर्यायोपर दृष्टि रखकर किसी भी पदार्थको देखा जाये तो वह पदार्थ बडा ही विचित्र दियाई देने रगेगा । जिन प्रकार कि एक नदीके जलको देखनेपर दो वाते दिखाई देती:जल और उसकी तरगे व प्रवाह । नदीका जल तरगित व प्रवाहिल है। एक तरगके पोछे दूसरी ओर दूसरोके पोहे तोमरी बराबर
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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