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________________ १२ उपसहार २५७ पीछे किन्ही धार्मिक अनुष्ठानो द्वारा वह इससे मुक्त हो जाता है, परन्तु जबतक अन्तःकरणसे युक्त रहता है तबतक इसमे राग तथा द्वेष रूप आकर्षण व विकर्षण शक्ति भी स्थित रहती है। इसी प्रकार परमाणुमे भी आकर्षण तथा विकर्षण शक्ति रहती है। दोनो ही पदार्थोमे यह शक्ति बराबर अनेक रूपोको लेकर स्वभावसे ही व्यक्त होती रहती है, क्योकि परिणमन करते रहना या भीतर ही भीतर परिवतन करते रहना द्रव्यका स्वभाव है, यह पहले बता दिया गया है। जिस प्रकार आकर्षण तथा विकर्षण शक्तियोके कारण अलैस्ट्रोन और प्रोटोन परस्परमे बँधकर स्कन्ध बन जाते हैं नी- re Affm- f rrm arr -
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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