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________________ २४६ पदार्थ विज्ञान पदार्थ एकदम नही बदल जाया करता । यद्यपि स्थूल परिर्तन तो जीव तथा पुद्गलमे ही देखा जाता है, परन्तु सूक्ष्म परिवर्तन छहो ही पदार्थोमे होता है, क्योकि 'पदार्थ-सामान्य' नामक अधिकारमे बताया जा चुका है कि जो कोई भी सत् होगा वह अवश्य परिवर्तनशील होगा ही। सूक्ष्म तथा स्थूल दोनो ही प्रकारके परिवर्तनो मे सहायक होना काल-द्रव्यका गुण है । ५ कालके भेद तथा सिद्धि यह काल दो प्रकारसे जाना जाता है-एक निश्चय काल और दूसरा व्यवहार काल । निश्चय काल पूर्वोक्त कालाणुको कहते हैं जो एक सत्ताभूत पदार्थ है और व्यवहार काल, घडी, घण्टा, पल, दिन, रात, ऋतु, वर्ष आदिका जो व्यवहार चलता है उसे कहते है। कोई यह शका करे कि घडी, घण्टा, पल आदि रूप व्यवहार काल ही सत्य है, निश्चय काल नही, क्योकि इस प्रकारका कोई कालाणु दिखाई नही देता, सो ठीक नही है। दिखाई न देना इस वातका प्रमाण नहीं कि वह है ही नही, क्योकि अमूर्तिक तथा सूक्ष्म पदार्थका ज्ञान इन्द्रियोसे नही तर्कसे होता है। परन्तु मृत्युसे भय क्यो खाया जाय, जिसके कारण कि कालको भयंकर बताया जाता है। वास्तवमे यह अज्ञान है, मोह है । लोगो का मोह शरीरको स्थायी रखना चाहता है, परन्तु वह स्थायी रहता नही। अपनी इच्छाके विरुद्ध होनेके कारण ही वह अनिष्ट लगता है, इसलिए इसको अनिष्ट तथा भयकर बताया जाता है। ज्ञानी जीव पदार्थके परिवर्ततशील स्वभावको जानते हैं, इसलिए वे इस परिर्तनको रोकनेकी कल्पना नही करते, क्योकि उसका रोका जाना असम्भव है । अत उनकी दृष्टिमे काल या मृत्यु अत्यन्त समतामयी तथा न्यायवान है, क्योकि वह ईमानदारीसे
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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